Uday singh kushwah 18 Jul 2023 कविताएँ बाल-साहित्य गूगल याहू बिंग 9604 0 Hindi :: हिंदी
"मेरे आंगन की गौरैया" मेरे आंगन में फुदकती गौरैया। मन को भाती दिल बहलाती। चुं -चुं कर पास हमें बुलाती । करती बड़ी उछल कूद शैतानियां। दीवारों के सूराखों में घोंसला। अपना तृण तृण जोड़कर बनाती । जीवन गीत मधुर सुनाया करती। अंडे देती धूप छांव में उनको बैठ सेती। नन्हें नन्हें बच्चों को दाना लाकर देती। चुंगना, उड़ना माता का फर्ज निभाती। नयी दिशा,नयी रोशनी में उन्हें घुमाती। फिर उनको उनके हाल पर संसार में छोड़ जाती। करती नव युग का नव सृजन नयी आशा हृदय में जगाती। नयी छांव नयी रोशनी में नया संसार बरसाती। स्वरचित और मौलिक रचना उदय सिंह कुशवाहा ग्वालियर मध्यप्रदेश