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आत्महत्या का कारण और निवारण

virendra kumar dewangan 31 Jul 2023 आलेख समाजिक Sucide 7080 0 Hindi :: हिंदी

इंसान हरेक कार्य सुख और आनंद की प्राप्ति के लिए करता है। फिर चाहे कोई सदकर्म करे या सठकर्म। वह अपनी विद्या, बुद्धि, विवेक, संस्कार और मति के अनुसार ही कर्म करता है और इसी में मजा, मस्ती और लुत्फ उठाने की कोशिशें करता है।

किसी को मांसाहार में मजा आता है, तो किसी को शाकाहार में, कोई सदाचार में रमा रहता है, तो कोई दुराचार मेें, कोई राजनीति में मस्त है, तो कोई सुनीति-दुर्नीति में, कोई नेता बना फिरता है, तो कोई अभिनेता। कोई चोरी में खुश है, तो कोई साहूकारी में-किंतु अफसोस यह कि इसमें किसी कर्म में स्थायी आनंद की प्राप्ति नहीं होती है।

	इसलिए, व्यक्ति कामयाबी के बावजूद जब देखता है कि उसकी कामयाबी तो दूसरों की कामयाबी से नगण्य है, तो वह हताशा, निराशा, दुःख और अवसाद में चला जाता है।
 
सिगरेट, चरस, गांजा, ड्रग्स और शराब का सेवन इसी की परिणति है, जिसमें व्यक्ति दुःखदर्द भूलने का मुगालता पालता है, लेकिन, अंततः यही बुराई जानलेवा बन जाता है।
 
उसको अपनी कामयाबी के बजाय दूसरों की कामयाबी बड़ी दिखने लगती है और यह होता है संस्कार व अध्यात्म से विमुखता की बदौलत।

							निवारण
	सच्चा आनंद इन भौतिक सुख-सुविधाओं में नहीं, बल्कि भौतिक सुख-सुविधाओं के त्याग और बलिदान में है। संतुष्टि में है। प्रकृति के करीब रहने में है। अपनेआप को ईश्वर का अंश मानने में है।
 
परमपिता परमात्मा को अपना पिता मानने में है। उस परमपिता से तादात्म्य बिठाने में है, जिसकी हम संताने हैं।...और यह समझने में है कि जो हुआ है, वह ठीक हुआ है। जो हो रहा है, वह ठीक हो रहा है और जो होगा, वह भी परमात्मा की कृपा से ठीक ही होगा।

	योगासन और प्राणायाम, तनाव व अवसाद मिटाने के अचूक अस्त्र हैं। इसको करते रहने से जहां सोच-विचार शुद्ध होता है, वहीं नींद भली-भांति आती है, जो अवसाद को दूर भगाता है। हताशा-निराशा और अवसाद सबसे पहले नींद को हर लेती है। यह निंद्रारोग का जनक माना जाता है।

	नैतिक शिक्षा लेना और देना, अवसाद की ओर न जाने का प्रधान अस्त्र है। नैतिक शिक्षा से जहां उचित व अनुचित का भेद किया जा सकता है, वहीं अपने वैचारिकतंत्र को विकसित भी किया जा सकता है।

	इसके लिए हर इंसान को अपने शौक को परवान चढ़ाना चाहिए। फिर चाहे, वह छोटा हो या बड़ा? खेलना-कूदना, गीत-संगीत, वादन-गायन, लेखन, नृत्य जैसी रुचियां जहां लोगों के मनमस्तिष्क को व्यस्त रखती हैं, वहीं इसकी सफलता से दिल-दिमाग में ऊर्जा का संचार होता रहता है, जो अवसाद को पास फटकने नहीं देता।

	किसी परिस्थिति में भी अकेले न रहें। अपने मित्र-यार, रिश्तेदार, परिजनों से मिलें-जुलें। उनके साथ हंसे-हंसाए। हंसने और हंसाने से न केवल अपने शरीर को तंदुरुस्त रखा जा सकता है, अपितु तनाव व अवसाद को दूर भगाया जा सकता है।

	उपर्युक्त के अलावा सामाजिक कार्यों में रुचि लिजिए। हो सके, तो किसी सामाजिक संस्था से जुड़िए और पूरे मनोयोग से अपना योगदान दीजिए। यह सेवाभावी हो, तो आनंद से भर देता है, जो तनाव और अवसाद का बैरी माना जाता है।

							उचित समाधान
	एक परिजन का दायित्व यह कि जब कोई करीबी उल्टी-सीधी बातें कर रहा हो, उटपटांग हरकतें कर रहा हो, अति या न्यून की ओर बढ़ रहा हो, तो उसकी बातें ध्यान से सुननी चाहिए। 

उससे सहानुभूति रखकर उसकी समस्याओं का निराकरण करने का पूरा-पूरा प्रयास करना चाहिए। अपने स्वयं के प्रयास से समस्या का निदान नहीं होता है, तो किसी मनोचिकित्सक से संपर्क करना चाहिए, ताकि आत्महत्या कारक अवसादों से निजात पाया जा सके।
							--00--
अनुरोध है कि पढ़ने के उपरांत रचना को लाइक, कमेंट व शेयर करना मत भूलिए।

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