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ऐसा मेरा गांव रे

Uday singh kushwah 30 Mar 2023 कविताएँ बाल-साहित्य Google/yahoo/bing 84066 1 5 Hindi :: हिंदी

ऐसा मेरा गांव रे!
कहीं पसरे -पनघट पर मेले
कहीं आम की छांव रे!
कहीं चौपाल पर वैठे,
बतियाते गांव रे!
कहीं धमा चौकडी़
कहीं धूम धधड़का !
कहीं मची है पंछियों 
कांव काव रे!
कही जूही,केतकी,वेला खिल रही
कहीं सखिंया झूला झूल रहीं...!
कहीं पसरी है गरीबों की बस्ती
कहीं खडे़ है महल अटरिया ऊची हस्ती
कहीं लटकी है औसारे में दही की हडिया
कहीं छन रहे माल बढिया बढिया...!
कहीं रभांती कजरी गाय
कहीं रोती चम्पा कुतिया,
कहीं पडी है लिपे पुते आंगन में खटिया
कहीं पडे़ है गोबर मूत...!
कहीं पसरी है गेंहूं की बालियां
कही लगें हैं सरसों के ढेर,
कहीं हो रही घर में खटपट
कहीं हो रही फाग रे....!
ऐसा मेरा गांव रे!

Comments & Reviews

Uday singh kushwah
Uday singh kushwah बहुत बहुत शुभकामनाएं

11 months ago

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