Samar Singh 01 May 2023 कविताएँ समाजिक आज के दौर में कितने बनावटी चेहरे लिए सब घूम रहे हैं, अंदर से कुछ और बाहर से कुछ दिखते हैं। 5080 0 Hindi :: हिंदी
पहले चेहरे पढ़ने का शौक नहीं था, अब देखता हूँ हर इंसान का चेहरा। हर इंसान में नहीं होते भगवान, कई चेहरों पे होता है शैतान का पहरा।। कितने बेगाने होते हैं चेहरे अनजान, कह देते है चेहरे हर शख्स की पहचान। कुछ मासूम चेहरे फरेबी होते हैं, जो दुनियाँ की निगाहों में धूल झोंकते हैं। कुछ मगरमच्छी चेहरे होते हैं, जो मय्यत में भी हँसकर फूल फेंकते हैं।। जो चेहरा हरदम हँसता मिले, समझो जख्म मिला है उसे गहरा, हर इंसान में नहीं होते भगवान, कई चेहरों पे होता है शैतान का पहरा।। रचनाकार- समर सिंह " समीर G"