Rupesh Singh Lostom 30 Mar 2023 कविताएँ अन्य पिली साड़ी बाली 13129 0 Hindi :: हिंदी
पिली साड़ी बाली नखरे खूब दिखाती हैं सारि सारि रात जगाती हैं अपने हुस्न के जादू से मुझपे रौब खूब जमाती हैं पिली साड़ी बाली थोड़ी नखरेली थोड़ी सी गुसैली और थोड़ी सी हैं झगरेली पर जो भी हैं जैसी भी हैं बस सिर्फ मेरी अपनी हैं बिलकुल अपनी जैसी धड़कन में बिलकुल धड़कन जैसी हौसलों में उड़न के जैसी क़दमों में रफ़्तार के जैसी बस अपनी हैं अपनी जैसी पतझड़ में सावन के जैसे धुलो में फूलों जैसी मेरी जीवन के दीपक में बाती के जैसी पिली साड़ी बाली