Santosh kumar koli 24 Sep 2023 कविताएँ समाजिक परदा 5596 0 Hindi :: हिंदी
बिन परदा सारी दुनिया, है नंगी की नंगी। परदे के सब कायल, बहुरंगी, चाहे सत्संगी। परदे का क़ायम मुकाम नहीं, है सिर्फ़ लांघ, लंगी। परदे का रूप, आकार नहीं, परदा भंगी, है बहुरंगी। दिखता वह होता नहीं, होता वह दिखता नहीं। बिकता जो दिखता नहीं, दिखता जो बिकता नहीं। सारे काम परदे के, बिन परदे सरता नहीं। परदे को परदे में रहने दो, हटा, तो कुछ बचता नहीं। परदे का अपना आब, अदब, है कानून, क़ायदा। कभी-कभी देश, सरकार, दुनिया तो चलता ही है परदा। सब भ्रम का परदा, मत हटाओ खुरदा। भूचाल आया दुनिया में, हटा परदा यदा -यदा।