Raj Ashok 08 Jan 2024 कविताएँ धार्मिक श्री राम 12898 0 Hindi :: हिंदी
भ्रमित मन कि व्याकुलता , देख , सिय , हट जाना क्या ? अभी वनवासी है। मर्यादा ,पुरूषोत्म श्री राम देख, हर एक ,वचन, पर्णय का आज निभाना क्या ? संघ्या कि वेला मे, एक घुन्घली सी बहुत दुर स्वर्ण मंर्ग की वो आभा देख, सिय,मन का. ललचना क्या ? इच्छा ,हिय से सुन सिय की राम का वन मे घंनुष उठाना क्या ? देख, प्रेम ,पत्ति-पत्नी का है। ये प्रसन्नता से खिलखिलाना क्या ? देख, एक पहला ही उपहार तो मांगा । आज सिया ने आश्चर्यचित हो जाना क्या? देख, आज नहीं तो कल कभी आना क्या ? लक्ष्मन, तुम रूको अभी हम शिकार पे जाते है। अभिलाषा सिय की है। तो ओर कर्म निभाना क्या ?