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पुरुष कठोर क्यों

Saurabh Sonkar 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक पुरुष इतना कठोर भी नही होता , वो सिर्फ बाहर से दिखता है , दिल का बहुत कोमल वो होता है , कठोर होना उसकी मजबूरी है , वो परिवार का रक्षक भी होता है, इसी लिए वो कठोर होता है, 7272 0 Hindi :: हिंदी

पुरुष कठोर क्यों

पुरुष इतना कठोर भी नही होता ,
वो सिर्फ बाहर से दिखता है ,
दिल का बहुत कोमल वो होता है ,
कठोर होना उसकी मजबूरी है ,
वो परिवार का रक्षक भी होता है,
इसी लिए वो कठोर होता है,
उसके अंदर भी एक दिल है ,
उसकी भी अपनी मजबूरी है ,
ऐसा नही कि पुरुष रोता नही है,
जब उसको दर्द होता है ,
वो एक कोने में रोता है ,
अकेले में वो रोता है ,
जिम्मेदारियों के बोझ को ,
जीवन भर वो ढ़ोता है ,
जो सबको एक रखना है ,
वो सब बर्दाश्त करता है ,
कभी माई की शिकायत को ,
कभी पत्नि के नखरो को ,
जो सबको एक रखना है ,
वो सब इग्नोर करता है ,
कि जीवन भर वो पिसता है,
जो थोड़ी सी भी खटपट हो ,
या फिर रिस्तों में किच किच हो ,
ये जिम्मेदारी है उसकी ,
कि सब कुछ ठीक कर ले वो ,
इन सबके बावजूद भैया,
ये भी तो जग हसाई है ,
तनिक आंसू छलक जाए ,
तो फिर समझो लुगाई है ,
वो सबके पेट की खातिर ,
घर अपना छोड़ जाता है,
चंद रुपये कमाने को ,
जमाने से भी लड़ता है ,
इसी जद्दो जहद में ही,
कठोर बनता वो जाता है ,
ये जो खुशियां तुम्हारी है ,
उसी की त्याग का प्रतिफल ,
वो तुम्हारा बाप है भाई है ,
तुम्हारा हमसफ़र और कल ,
पुरुष में भी मानवता है ,
वो सब वैल्यू समझता है ,
है अपनो की सुरक्षा में ,
वो चट्टान बन जाता ,
तनिक छुपता छुपाता वो ,
तनिक दिल की बताता को ,
पुरुष भी प्रेम का भूंखा है,
जताकर तुम जरा देखो ,
गूंज बेटी की पापा सुन ,
वो सब दुःख भूल जाता है ,
पुत्र जब प्रेम से बोले ,
फिर उसको गर्व हो होता है ,
जब इतना प्रेम भीतर है,
फिर उसको दोष क्यों देना ,
जवां तुम हो गये माना ,
उसे ही रौब क्यों देना ,
मनोविज्ञान को समझो ,
तुम उसके ज्ञान को समझो,
प्रगतिवादी धरा में भी ,
जरा आधार को समझो ,
--- सौरभ सोनकर✍️

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