Santosh kumar koli 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक वृद्ध पिता 63875 0 Hindi :: हिंदी
घर में पिताजी हैं, तो नौकर के पैसे बचते हैं। सब्ज़ी खरीदने, बच्चों को स्कूल लाने, ले जाने में जचते हैं। पिताजी घर में, नौकर नहीं, तो क्या ग़म है? नौकर का खर्चा ज़्यादा, पिताजी का कम है। कुत्ते की ज़रूरत नहीं, पूरी वफादारी निभाते हैं। चौकीदारी पूरी करते, जब हम पिकनिक जाते हैं। पिताजी एटीएम, मेरे लिए ही तो कमाते हैं। राज़ी से न सही, पर पेंशन के पैसे, हमें ही खिलाते हैं। इतना काम करते हैं, तो रोटी दे ही देते हैं। घर का गुस्सा भी हम, पिताजी पर उतार लेते हैं। बचा -खुचा खाकर भी, आशीष ही देते हैं। वे सभी से प्यार करते, सब उन्हें बोझ ही समझते हैं। पेट काट- काटकर, घर बड़ी मेहनत से बनाया है। गेट पास का कोठा, उनके हिस्से आया है। अब पिताजी जड़ हुए, मन- मारकर रह रहे हैं। वृद्धाश्रम जाने की, बार-बार कह रहे हैं। जब काम के नहीं रहे, तो मैंने भी सोच लिया। अनुपयोगी जीव को ले, वृद्धाश्रम पहुंच लिया। वृद्धाश्रम पहुंच लिया।