Sanam kumari Shivani 30 Mar 2023 कविताएँ देश-प्रेम 15954 0 Hindi :: हिंदी
बीक रहा है पानी,पवन बीक ना जाए बिक गई है धरती, गगन बीक ना जाए चांद पर बिकने लगे हैं, ज़मी डर है कहीं सूरज की तपन बीक ना जाए हर जगह बिकने लगी है स्वार्थ नीति डर है कहीं धर्म बिक ना जाए देकर दहेज खरीदा जाता हैं,हर दूल्हे को डर है कहीं उन्हीं के हाथों, दुल्हन बिक ना जाए। हर काम की रिश्वत ले रही हैं नेता कहीं इन्हीं के हाथों सांसद भवन बीक ना जाए आदमी मरा है तो भी आंख खुली है डरता है मुर्दा कहीं कफन बीक ना जाए। यहां सब कुछ बिकता है दोस्तो, रहना जरा संभल के , बैचने वाले तो हवा भी बेच देते हैं गुब्बारों में डाल कर, सच बिकता है झूठ बिकती है बिकती है हर कहानी, तीनों लोकों में फैला है,फिर भी बिकती बोतल में पानी कभी फूलो कि तरह मत जीना जिस दिन खिलोगे टूटकर बिखर जाओगे जीना है तो पत्थर के तरह जियो, जिस दिन तराशे गए खुदा बन जाओगे By - sanam kumari Shivani