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गुरू महिमा

Santosh kumar koli 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक गुरू महिमा 87257 0 Hindi :: हिंदी

पाहन बीच पावक का बास, पाहन रहे अज्ञात।
सत्य की चोट लगे सतगुरू की, हो असत्य का पात।
मृग नाभि में बसे कस्तूरी, ज्यों घन में बरसात।
ढूंढ़ चाहत फिरे कानन में, सतगुरू देते निजात।
जड़ में ज्योति जल उठे, ज्यों मूरत रूप साकार।
दिव्य प्रतिमा गुरूदेव, तुम्हें नमन है बारंबार।
सुमन समाहित सदा रहे, एक मीठी विरल सुगंध।
पुष्प रहे अनजान अलि, गाए प्रेम के छंद।
साध्य एक, साधक अनेक, पड़े भंवर में बंद।
सतगुरू से ज्ञान हो, मन में ज्योति जले अखंड।
कछवी, कुररी, मीन, मोरनी सम, बहे ज्ञान की धार।
दिव्य प्रतिमा गुरूदेव, तुम्हें नमन है बारंबार।
मूर्त या अमूर्त सही, पर बिना बीज नहीं उत्पत्ति
कब, कौन, कैसे रची, पर बिना दिव्य नहीं है सृष्टि।
देखो नजर पसार, तृष्णा बिन नहीं है तुष्टि।
जग में रहे अंधेरा, गुरु बिन ना ज्ञान की ज्योति।
निरंजन की माया बिना, गतिहीन संसार।
दिव्य प्रतिमा गुरुदेव, तुम्हें नमन है बारंबार।
तुम्हें नमन है बारंबार।

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