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प्रवेशोत्सव

Mohan pathak 30 Mar 2023 कहानियाँ हास्य-व्यंग समसामयिक 33338 0 Hindi :: हिंदी

‌प्रवेशोत्सव
‌अप्रेल का महीना आते ही विद्यालयों में प्रवेश की तैयारियां चल रही थी। सभी सरकारी विद्यालयों में प्रवेशोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा था। सरकारी योजनाओं का बखान जोरशोर से किया जा रहा था। मुफ्त पुस्तक, मुफ्त भोजन,मुफ्त पोषाहार, और मुफ्त गणवेश से लेकर इन विद्यालयों के अध्ययन का वातावरण और उच्च शिक्षा प्राप्त प्रशिक्षित स्टाफ की खूब प्रशंसा की जा रही थी।कही रैली,कहीं जनजागरण,कहीं बैठक और कहीं बड़े स्तर पर सेमिनार आयोजित हो रहे थे। प्रिंट मीडिया से लेकर सोसियल मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में सरकारी विद्यालयों का बखान करने वाले विज्ञापन देखने को मिल रहे थे।।                                   नित नयी नयी योजनायें जैसे इंग्लिश स्पीकिंग डे, प्रतिभा दिवस,विज्ञान दिवस,कला दिवस, एकता दिवस, खेल दिवस,व्यावसायिक शिक्षा ऐसी ही अनगिनत योजनाओं के क्रियान्वयन के बावजूद विद्यालयों में निरन्तर घटती छात्रसंख्या को लेकर शिक्षा विभाग के आला धिकारियों ने एक विशाल सम्मेलन का आयोजन किया। इस सम्मेलन में प्रदेश से लेकर जिले, ब्लॉक  के बड़े अधिकारियों शिक्षकों,कर्मचारियों  अभिभावकों तथा आम जन ने भागीदारी की।इस सम्मेलन में सरकारी शिक्षा की योजनाओँ पर बड़े बड़े भाषण दिये गये।अन्त में सभी से आग्रह किया गया कि आप सभी अपने पाल्यों को सरकारी विद्यालयों में ही प्रवेश दिलायें।यहाँ उच्च प्रशिक्षित अध्यापकों के निर्देशन में आपके बच्चों का भविष्य सुरक्षित है।        यह सुनकर सभा के बीच से एक सामान्य व्यक्ति उठा,और बोला,--महोदय निश्चय ही इतनी खूबियों वाले सरकारी विद्यालयों में ही हम सभी को अपने अपने पाल्यों को प्रवेश दिलाना चाहिए।किन्तु क्षमा करना मेरी एक शंका का समाधान हो जाये तो अच्छा होता। मंच से निदेशक महोदय ने पूछा, अपनी शंका बिना किसी झिझक के कहो। यह सुनकर वह सामान्य जन बोला महोदय जब सरकारी विद्यालय इतनी खूबियों से पूर्ण हैं तो मुझे विश्वास है कि आप सभी के पाल्य इन्हीं विद्यालयों में शिक्षा प्राप्त करते होंगे।मुझे गर्व होगा अपने पाल्य को एक ऐसे विद्यालय में प्रवेश दिलाने में जहाँ मन्त्री से लेकर प्रदेश के आला अधिकारियों के बच्चों के साथ मुझ जैसे सामान्य का बच्चा शिक्षा प्राप्त करता है।यह सुनकर सभी मंचासीन अधिकारियों ,मंत्रियों,शिक्षकों,और कर्मचारियों को जैसे सांप सूंघ गया हो। सब एक दूसरे का मुँह ताकने लगे।        

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