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☝ खादी रचीत्त राष्ट्र.... ✍️

Amit Kumar prasad 30 Mar 2023 कविताएँ देश-प्रेम " सन, सन सन्ननन झम्मर झम्मर झम, झप्पर - झप्पर आवाज़ों में! " इन शब्दों द्वारा खादी के बुने ज़ाने के आवाज़ को प्रदर्शीत्त किया गया है! और आगे इस कवित्ता में हीं कवित्ता का सम्पुर्ण वर्णन है! अत्तिरिक्त Brand = Brilliency Reactionary Attractive Neutral Dedication to keep any things of feature prepares Brand. And yesterday of freedom staying Khadi Brand,Today is even Brand and when upto staying democracy in Nation. Khadi will be staying Brand. It is old is gold evergreen Brand on the rights and dignity to take yesterday from present of continuing period. Struggle + Achievement = Freedom. And ( Freedom + Democracy) × Progress = Khaadi. 🙏 Jai Hind... 85332 0 Hindi :: हिंदी

सन, सन सन्ननन झम्मर झम्मर झम, 
झप्पर - झप्पर आवाज़ों में! 
बनत्ती है खादी ज़ो बना स्वाधिनत्ता, 
का मुल त्तंत्र हर वादों में!! 
                      हर पढ़े लीखें ज्ञानी महान फ़िर, 
                      हो भगत्त या फ़िर शुभाष! 
                      चाहे कहें अम्बेडकर, वल्लभ पटेल, 
                      गांधी खादी निज़ बुनत्तें थे!! 
एक ही खद्दड़ शर से पाव, 
वो पहन स्वदेश पथ चलत्ते थे!
गर आज़ादी को दिशा मिली, 
नेतृत्व वस्त्र पद खादी था!! 
                       यही वस्त्र पहन सब पद वंचीत्त, 
                       खादी कि धार आज़ादी था!
                       हर रेश - रेश में रोश अलग, 
                       नेतृत्वत्ता नेत्ता कहलात्ता है!! 
नेतृत्व कर्म पथ कल और आज़, 
ईस खादी में देखा ज़ात्ता है!
है कल कि बात्त जिसने चल कर, 
ज़िसमें आज़ आज़ादी ले आई!! 
                       हर संघर्ष महा बल ज्ञान मान, 
                       खादी के वस्त्र में लहराई! 
                       हर ज़न - ज़ीवन का मान है खादी, 
                       आज़ादी का सम्मान भी खादी है!! 
यें खादी ही कल का है हास, 
भारत्त का आज़ भी खादी है! 
खादी है आज़ादी, आज़ादी का ईत्तीहास, 
बस खादी है!!... हम... म.. म.. हां! 
                         खादी के रेशे - रेशे मे, 
                         अमुल धरा का सार बसा! 
                         मम्त्ता का करूण पुकार बसा, 
                         मात्ता - बहनो का प्यार बसा!! 
है बसी राह संघर्षों कि, 
और भुली बिसरी उत्कर्षों कि! 
रेशे - रेशे में कर्म धार, 
ज्ञानी का ज्ञान प्रामर्शें भी!! 
                 ये कल कि त्ताकत्त और आज़ कि निष्ठा, 
                 भविष्य कि है आवाज़ बनी! 
                 है कथा व्यथीत्त इस खादी में, 
                 इससे है कल्याण कि धार जुड़ी!! 
कह गए है राष्ट्र के अमुल कवी, 
सोहन लाल द्विवेदी ज़ी कि कथा! 
खादी ने राष्ट्र कि नीव धरी, 
खादी ने राष्ट्र पद गणतन्त्र धरा!! 
                  हर मानव होत्ता नहीं गलत्त, 
                  इंसान गलत्त है होत्ता कभी - कभी! 
                  त्यों प्रजातन्त्र है ज़ुड़ा धार से, 
                  प्रज़ान्त्र कि आज़ादी खादी!! 
खादी ने धरा पर दिया समर्थन, 
हर न्याय, मान बल निष्ठा को! 
और अटल कि अविचल धरणों पर, 
राष्ट्रवाद कि अमुल प्रत्तिष्ठा को!! 
                     ये हैं अमुल्य और गौर्वमय, 
                     ज़ीसे पहन धरा का मान मिले! 
                     कर गये समर्पण स्वदेश के पथ ज़ो, 
                     उन वीरों का अभीमान मीले!! 
है मिली स्वाधिन्त्ता संग संविधान, 
विरास्त्त में मिली संग खादी है! 
दाग न इसमे लगें त्तभी,
खादी पथ संग आज़ादी है!! 
                     है मान समन्वय कि साखों संग, 
                     आज़ादी को है आवाम मिला! 
                     खादी के धागे - धागे मे, 
                     सफ़ल धरा का सार छिपा!! 
           हर दलित्तों का उद्धार छुपा, 
          और अखंड हिन्द का सार छुपा!! 
है राष्ट्र को बुन कर अर्पण कर दी, 
नमन कलम दी खादी में, 
सन, सन सन्ननन झम्मर झम्मर झम, 
झप्पर - झप्पर आवाज़ों में!! 
                        खादी ने स्वाधिन्त्ता रुप धरा, 
                        सर्व पथीक विकाश कि धरणों पें! 
                        बनत्ती है खादी ज़ो बना स्वाधिनत्ता, 
                        का मुल त्तंत्र हर वादों में!! 
त्तम हो विलीन करत्ती जय - संखनाद, 
प्रजातन्त्र हिन्द कि आज़ादी में! 
चलत्ता विकाश ज़ब वस्त्र धार, 
कर हिन्द नमन इस खादी में!! 
                          खादी में झल्कत्ता प्रजात्तन्त्र, 
                          खादी चल कल पथ आज़ दिया! 
                          खादी में वर्णित्त संघर्ष हिन्द कि, 
                          धर खादी धरा आज़ाद किया!! 
कर रहें काव्य पथ अधिकार नमन, 
और गुंज़ खिली खादी - खादी! 
और प्रथम ग्मन पथ स्वदेश गठन का, 
मुल त्तंत्र थी खादी कि आज़ादी!! 

Poet    :  Amit Kumar Prasad 👍

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