Join Us:
20 मई स्पेशल -इंटरनेट पर कविता कहानी और लेख लिखकर पैसे कमाएं - आपके लिए सबसे बढ़िया मौका साहित्य लाइव की वेबसाइट हुई और अधिक बेहतरीन और एडवांस साहित्य लाइव पर किसी भी तकनीकी सहयोग या अन्य समस्याओं के लिए सम्पर्क करें

नगर नियोजन की जरूरत-अर्थव्यवस्था को अर्थपूर्ण व गतिपूर्ण बनाने के लिए

virendra kumar dewangan 19 Jul 2023 आलेख अन्य Citizen Planning 5598 0 Hindi :: हिंदी

शहरी नियोजन पर नई दिल्ली में आयोजित दो दिवसीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए केंद्रीय आवास और शहरी नियोजन कार्यमंत्री हरदीप पुरी ने कहा है कि पहले की सरकारों ने शहरी विकास के प्रति आपराधिक अनदेखी की है, जिसका नतीजा है कि भारत को अनिच्छुक शहरीकरण वाले देश के रूप में देखा  जा रहा है।

	वस्तुतः हमारा देश जिस गति से अंधाधुंध शहरीकरण की तरफ बढ़ रहा है, उससे तो यही आभास होता है कि अगले 5-10 साल में देश की 70 प्रतिशत आबादी छोटे-बड़े शहरों में सिमट कर रह जाएगी। 

अभी भारतीय शहरों का राष्ट्रीय जीडीपी में योगदान 60 प्रतिशत से अधिक है, जो 5-10 साल में 70 प्रतिशत से ज्यादा हो जाएगी। जहां आधारभूत सुविधाओं की जरूरत के साथ-साथ बड़े पैमाने पर रोजगार के साधन विकसित करने, पक्की और चौड़ी सड़कों का जाल बिछाने और रहवासी कालोनियों का निर्माण करने की जरूरत होगी।

	वाकई यह गौर करनेवाली बात है कि देशभर में पहली, दूसरी व तीसरी श्रेणी के नगरों और छोटे व मध्यम शहरों व कस्बों में जिस तरह से अनियंत्रित व अनियोजित विकास किया गया है और किया जा रहा है, वह देश के लिए नई-नई समस्या पैदा कर रहा है।

	दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता और बैंगलुरु जैसे महानगरों को ही ले लीजिए। जो बरसाती पानी रिहायशियों को भीषण गरमी से निजात दिलाकर सुख-शांति प्रदाय करनेवाली होनी चाहिए, वो पानी मुसीबतों का अंबार लेकर अशांति, परेशानी, बीमारी और कष्ट-कठिनाई का वाहक बन जाती है और सामान्य से जरा अधिक वर्षा जनजीवन को बुरी तरह अस्त-व्यस्त करने के साथ-साथ वाशिंदों का जीना दुभर कर देती है।

	मानसूनी वर्षा से शहरी सड़कों पर पानी का सैलाब उमड़ पड़ता है, जिससे इंसान ही नहीं, पशु-पक्षी, गाड़ी-मोटर और पुल-पुलिया तिनके के माफिक तैरने लगते हैं। अस्पतालों, कार्यालयों, उद्यमों, स्कूलों, रहवासी कालोनियों में घुटने तक नहीं, गले तक पानी घुस जाता है।

	जबकि बारिशी पानी नालियों व डेªनेज सिस्टम के मार्फत शहरों के बाहर निकल जाना चाहिए या तालाबों व कुंआ-बावलियों में समा जाना चाहिए। पर, शहरीकरण ने सबसे पहले सरोवरों को ही इंसानी बस्ती के रूप में तब्दील कर दिया है और वहां कांक्रीट के जंगल खड़े कर दिए गए हैं। ...और ऐसा खेल शहरी निकायों के प्रशासकीय अधिकारियों-कर्मचारियों व सियासतदानों की मिलीभगत से संभव नहीं है।

माना कि हमारे शहरों के डेªनेज सिस्टम काफी पुराने और छोटे हो गए हैं, पर उन्हें बड़े और दुरुस्त करने का काम आखिर किसका है? यह जिम्मेदारी नगरीय निकायों के मार्फत राज्य सरकारों को उठानी चाहिए, जो वे नहीं करते हैं, जिसका खामियाजा नागरिकों का उठानी पड़ती है।

	इसी से हर कोई अंदाजा लगा सकता है कि शहरों का सारा नियोजन केवल कागजों तक सीमित रहता है या किया भी जाता है, तो महज दो-चार या पांच साल तक के लिए, ताकि अगली मर्तबा फिर वोट कबाड़कर सत्ता हथियाया जा सके और मौजमस्ती करते हुए अनियोजित विकास किया जा सके।

	जबकि नगर नियोजन चार-पांच साल का न होकर सौ-दो सौ साल की बढ़ती जनसंख्या, गाड़ी-मोटर और बुनियादी मानवीय सुविधाओं को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए। अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस, कनाडा और सिंगापुर आदि विकसित देशों में यही होता है, जिससे वे बारिश का भरपूर आनंद उठाते हैं और जीवन को सुखमय बनाते हैं।

	सवाल यह कि 100 स्मार्ट सिटी योजना और उसमें लगाए गए बजट का क्या हुआ, जो बरसाती पानी की तकलीफों से रहवासियों को निजात नहीं दिला सका? जबकि स्मार्ट सिटी योजना में करोड़ों का निवेश किया जा चुका है।

	हालांकि नगर नियोजन राज्य सहित नगरीय निकायों का विषय है, जहां पर सियासतदानों को ओछी सियासत करने की फुर्सत नहीं रहती है, लेकिन केंद्र सरकार चाहे तो नगरों का नियोजित विकास करने का बीड़ा उठा सकती है। यद्यपि उसने स्मार्ट सिटी योजना लांच कर नगरों को नियोजित करने का प्रयास किया है, तथापि नतीजा ढाक के वही तीन पात हैं।

	अनियोजित विकास का नतीजा यह भी कि शहरों में बढ़ती आबादी, सड़क किनारे के ठेले-खोमचे व गाड़ी-मोटर की रेलपेल से सड़कें छोटी होती जा रही है, जिसमें मोटरवाहन चलाना तो दूर, पैदल चलना तक दुश्वार होता जा रहा है।

	चूंकि  नगर नियोजन में दूरदर्शिता का अभाव है, इसलिए बड़े-छोटे शहर आबादी के बढ़ते बोझ को सहन नहीं कर पा रहे हैं और नगरीय जीवन को चुनौतियों से भरकर कष्टप्रद बना रहे हैं।

	तिस पर तुर्रा यह कि सड़कों पर आवारा मवेशियों का कब्जा रहता है, जिससे आएदिन दुर्घटनाएं होती रहती है और जवान-जहान लोग बेमौत मरते रहते हैं। पर, इससे किसी सरकार के माथे पर कोई शिकन तक नहीं आती।

	अभी हाल छग प्रदेश के ग्राम बिरेभाठ निवासी लक्की टंडन, जो 19 साल का था, रात को करीब नौ बजे अपने छोटे भाई के लिए दवाई लेने के वास्ते बाइक से अहिवारा जा रहा था। अहेरी के पास रोड पर फालतू मवेशी बैठे-खड़े थे। उनमें से एक से टंडन की तेज रफ्तार बाइक टकराई, जिससे कि टंडन ही नहीं, मवेशी की भी मौके पे मौत हो गई और बाइक चकनाचूर। हालांकि मृतक हेलमेट नहीं पहना था, यदि पहना होता, तो शायद उसकी जान जाने से बच सकती थी।

	दरअसल, नगरीय नियोजन न सिर्फ नागरिक सहूलियतों को बेहतर बनाने के ध्येय से किया जाना चाहिए; अपितु शहरी अर्थव्यवस्था को अर्थपूर्ण व गतिपूर्ण बनाने के लिए भी किया जाना चाहिए।
					--00--

अनुरोध है कि पढ़ने के उपरांत रचना को लाइक, कमेंट व शेयर करना मत भूलिए।

Comments & Reviews

Post a comment

Login to post a comment!

Related Articles

किसी भी व्यक्ति को जिंदगी में खुशहाल रहना है तो अपनी नजरिया , विचार व्यव्हार को बदलना जरुरी है ! जैसे -धर्य , नजरिया ,सहनशीलता ,ईमानदारी read more >>
Join Us: