भूपेंद्र सिंह 19 Dec 2023 ग़ज़ल समाजिक गज़ल 9277 0 Hindi :: हिंदी
धीरे धीरे ही सही हृदय में आग सी जल तो रही है, धीरे धीरे ही सही किताबे पढ़ते हुए रात ढल तो रही है, धीरे धीरे अब ये फसल गल तो रही है, धीरे धीरे हृदय में एक चिंता सी पल तो रही है, चिंताओं से भरपूर ये आत्मा मर तो रही है।।