Archana Singh 22 Sep 2023 कविताएँ समाजिक वक्त 4044 0 Hindi :: हिंदी
वक्त बदलता नहीं , इंसान बदल जाते हैं ! बंद आंखों से तो , अंधेरे भी नजर आते हैं ! हर खेल अपनी नजरों का तजुर्बा होता है ! रेल की खिड़की से देखा तो , अक्सर पेड़ भी दौड़ते नजर आते हैं ! ये आंखों का धोखा है या नजरिए का सोच ! फर्क सिर्फ इतना है कि .... वक्त और हालात के अनुसार , नजर और नजरिए बदल जाते हैं ! इंसान की फितरत ही यही है दोस्तों कि वो वक्त के साथ अक्सर बदल जाते हैं ....! धन्यवाद दोस्तों 🙏🙏💐💐