Manju Bala 17 May 2023 कविताएँ समाजिक जिन्दगी ,प्यार लड़की ,दोस्ती ,रोने ,औपचारिकता , चेहरे , मुखौटे ,आपा-धापी , फ़ैशनपरस्ती ,अनजानों की भीड़ अपनों की तकलीफों ,परेशानियों से बेखबर फफ़क- फफ़क कर रोने 8029 4 5 Hindi :: हिंदी
बनावटी जिन्दगी कितनी बनावटी जिन्दगी जीने लगे है हम ? झूठा रोने लगे है हम झूठा हँसने लगे है हम | एक चेहरे पर कई चेहरे लगा कर जीने लगे है हम अपने असली चेहरे को कही दफना चुके है हम एक मुखौटे पर कई मुखौटे लगाने लगे है हम कितनी बनावटी जिन्दगी जीने लगे है हम ? झूठा रोने लगे है हम झूठा हँसने लगे है हम| दिखावे की और आपा-धापी की जिन्दगी में खोने लगे है हम अपने ही दिल को नाखूनों से खरोचने लगे है हम बहुत अकेले बहुत ही ज्यादा अकेले होने लगे है हम इस फ़ैशनपरस्ती की दुनिया में खोने लगे है हम कितनी बनावटी जिन्दगी जीने लगे है हम ? झूठा रोने लगे है हम झूठा हँसने लगे है हम| अपने सभी रिश्तों का अपने हाथों से गला घोटने लगे है हम इस अनजानों की भीड़ में अनजाने से खड़े होने लगे है हम कितनी औपचारिकता निभाने लगे है हम बनावटीपन की हर सीमा को लाघंने लगे है हम हर रिश्ते के सीने में खंजर घोपने लगे है हम कितनी बनावटी जिन्दगी जीने लगे है हम ? झूठा रोने लगे है हम झूठा हँसने लगे है हम| अपनों की तकलीफों ,परेशानियों से बेखबर रहने लगे है हम इस बनावटी जिन्दगी के मायाजाल में फ़सने लगे है हम बंद कमरे में फफ़क- फफ़क कर रोने लगे है हम कितनी बनावटी जिन्दगी जीने लगे है हम ? झूठा रोने लगे है हम झूठा हँसने लगे है हम|
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I have done M.A in three subjects these are Hindi ,History ,Political science. I have also done M.Ed...