Maushami 13 Aug 2023 कविताएँ अन्य गहरी# खामोशी # समंदर# सिकंदर 5789 0 Hindi :: हिंदी
गहरी खामोशी का समंदर एक गहरी खामोशी का समंदर हूं मैं, हां मैं हूं वही जो कल था और आज भी है और कल भी रहूंगा, तू झांक कर तो देख तेरे अंदर हूं मैं, तू मुझे पहचान या ना पहचान, में तुझे जनता हूं, तू वही तो है, जो खाक से उठा, जो खाक से बना, जो बन गया पर अब भी खुद को समझे सिकंदर हूं मैं। तेरा गुरुर, तेरा मैं तुझमें सिमटकर तुझको खा रहा है, पर तू ये माने मस्त कलंदर हूं मैं।