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किसी बुनकर के चरखे की तरह चरखा विचारों का घूमता है

Ujjwal Kumar 13 Jul 2023 कविताएँ अन्य चरखा विचारों का घूमता है, 5974 0 Hindi :: हिंदी

किसी बुनकर के चरखे की तरह, 
चरखा विचारों का  घूमता है,
बुनता रहता वो रात दिन
ये मन रूपी धागा।

धागा, जो धागा-धागा करके,
एक पर्दा बन जाता है मिथक का,
और द्वार पर सत्य के है
पूर्णत: छा जाता।

और फिर देखा नहीं जाता
सत्य; न आसमान का, न सीने का,
जब तक वो शीतल प्रकाश
उसे भेद नहीं जाता।

-✍उज्जवल कुमार

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