भूपेंद्र सिंह 31 Dec 2023 कहानियाँ प्यार-महोब्बत क्या मनुकांता और अजीत सिंह हो पाएंगे एक? क्या अजीत ढूंढ पाएगा जादुई मणि या फिर मारा जायेगा जादूगर काला कलोटा के हाथों। क्या वो फतेहगढ़ का महाराजा बन पाएगा या फिर महाराज की परीक्षा के आगे हार जाएगा । एक अद्भुत रोमांचक और रहस्यमई कहानी देखने के लिए जरूर पढ़े "मनुकांता और अजीत की प्रेम गाथा।" 3305 0 Hindi :: हिंदी
उपन्यास अजीत और मनूकांता की प्रेम गाथा भाग -1 अजीत और सुजीत चारों तरफ से सुंदर पहाड़ियों, जंगलों और फूलों की घाटियों से घिरी हुई बहुत ही सुंदर रियासत थी फतेहगढ़ और इससे भी ज्यादा खूबसूरत थी फतेहगढ़ की राजकुमारी मनूकांता, मोहब्बत और इश्क का दूसरा नाम। फतेह गढ़ के सुल्तान वीरेंद्र प्रताप की इकलौती बेटी, परियों की शहजादी और परियों की रानी मनूकांता। आइए अब खो जाते है एक जादुई और तिलस्मी दुनिया फतेहगढ़ में। रात का वक्त था। रात के करीब बारह बजे होंगे। फतेहगढ़ रियासत के एक कोने पर स्थित एक कच्चा सा छोटा सा मकान था। इस मकान में से किसी 18 -19 वर्षीय लड़के अजीत सिंह के रोने की आवाज आ रही थी। कोई बूढ़ा व्यक्ति उसे जोर जोर से पीटे जा रहा था। उसकी ये रोने की आवाज रात की इस अजीब और भयानक सी खामोशी को चीरे जा रही थी। एक भयानक से दिखने वाले बूढ़े व्यक्ति ने एक जोरदार बेंत अजीत सिंह की टांग पर जमाते हुए चिलाकर कहा "साले अजीत के बच्चे मैने तुझे 50 सेबो को देकर उन्हें बेचने बेजा था। सारे सेब बेचने के बाद भी तू सिर्फ 40 रूपये ही लेकर आया है। सच सच बता बाकी दस सेब तू खा गया ना। बाकी दस रुपए कहां है? उन्हे धरती खा गई या फिर आसमान निगल गया।" इतना कहकर उसने एक जोरदार बेंत उसकी दूसरी टांग पर दे मारी। "सच बता रहा हूं आका, मैंने वो दस सेब कुछ भूखे बच्चो को बांट दिए थे।" अजीत सिंह ने रोते बिलखते हुए कहा। इतना सुनते ही वो बूढ़ा व्यक्ति आग बबूला हो गया और उसे जोर जोर से पीटने लगा। जमकर पीटने के बात उसने अजीत सिंह का हाथ पकड़ा और उसे एक भयानक से कमरे में धक्का दे मारा। ये कमरा जमीन में थोड़ी सी गहराई में स्तिथ था। वो धम से कमरे के अंदर जा गिरा और दीवार से जा टकराया। उस बूढ़े ने उस कमरे का दरवाजा बंद करते हुए कहा "अब दो दिन तक ना तो तुम्हे खाना मिलेगा और ना ही पानी।" अजीत सिंह ने उसकी बात को सुनकर भी अनसुना कर दिया क्योंकि उसे अब इन सब आदतों की आदत सी हो गई थी। उसके साथ तो रोज ही ऐसी घटनाएं होती थी। वो दीवार के साथ इक्ट्ठा सा होकर बैठ गया और अपनी यादों में गुम सा हो गया। उसे सब कुछ याद आने लगा की किस तरह से उसके माता पिता उसे उसकी मौसी के पास छोड़कर चले गए थे । वे कहां गए थे ये तो उसे भी मालूम नहीं था। उसे तो दो महीने बाद पता चला था की उसके माता पिता अब इस दुनिया में नहीं रहे। वे कहां गए किसी ने भी उसे नहीं बताया। वो बेचारा बाद में बस रोता बिलखता रहा। उसकी मौसी उससे घर के सारे काम करवाती , कभी मजदूरी करने बेज देती। मारती पिटती। उसका मौसा कौनसा कम जालिम था वो भी पीट पीटकर उसका बुरा हाल कर देता। एक दिन तो उसकी मौसी ने हद पार कर दी। उसने अजीत सिंह को एक जालिम बूढ़े को 100 आने में बेच कर खूब ऐश मारी और अपने ही घर में महारानी बनकर मजे लुटती रही। उस बूढ़े ने अजीत सिंह को उसके बालों से पकड़ कर फतेहगढ़ में ला पटका। उसे कभी फल बेचने बेज देता तो कभी किसी के घर में बर्तन मांजने के लिए। बदले में वो बूढ़ा उसके मुंह पर एक सुखी रोती दे मारता और खुद बाहर सरायों में जाकर देशी विदेशी खाना खाकर मजे लुटता और हरामों सी नींद लेता। अजीत सिंह उस कमरे में गुम सुम सा अपने आप में मस्त हुआ बैठा था। उसके कुछ समझ में नहीं आ रहा था की उसके साथ क्या हो रहा है? सोचते सोचते उसकी कब आंख लग गई उसे कुछ पता ही नहीं चला। सुबह हो चुकी थी। एक खिड़की से सूरज की कुछ किरणे उसके मुंह पर पड़ने लगी । उसे अचानक से होश आया और वो उठ खड़ा हुआ। उसने आस पास नज़र दौड़ाई। वहां पर कोई भी नज़र नहीं आ रहा था। वो फिर से गुम सुम सा होकर बैठ गया और कुछ सोचने लगा। एक बार फिर से उसके भूतपूर्व के सभी नजारे उसकी आंखों के आगे से गुजरने लगे। उसे याद आने लगा की किस तरह एक साल पहले उसके माता पिता उसे उसकी मौसी के पास छोड़ न जाने कहां गायब हो गए थे। उसे तो दो महीनों के बाद पता चला की उसके माता पिता अब इस दुनिया में नहीं रहे, उन्हें क्या हुआ कैसे हुआ? किसी ने उसे न बताया। वो तो बेचारा रोता बिलखता ही रह गया। मौसी उस पर खूब अत्याचार करती। घर के सारे काम करवाती तो कभी कहती " अपने मां बाप के साथ तूं कमबख्त भी मर जाता तो मुझे शांति मिल जाती।" एक दिन तो उसकी मौसी ने हद कर डाली उसे इस बूढ़े पाखंडी को 100 असरफियों में बेच डाला और खुद बाजार से जेवर ला खूब नाची और फूला न समायी। वो बूढ़ा कभी उससे चोरी करवाता , कभी कुछ बाजार में बेचने भेज देता। बदले में उसे दो सुखी रोटियां और चार पांच चमाटे या बेंत मिलती। उसकी जिंदगी इसी तरह बस दर्द में गुजर रही थी। इतने में कमरे का दरवाजा खुला। अजीत सिंह डर के मारे तेजी से उठ खड़ा हुआ। वो बूढ़ा कमरे के दरवाजे पर खड़ा हो उसकी और घूरने लगा मानों की अभी उसे दबोच लेगा और चील की तरह उड़ जायेगा। बूढ़ा - " क्यों वे हरामजादे अभी तक वेश्याओं की नींद ले रहा था।" अजीत सिंह - ( डरते हुए) " नहीं आका मैं तो बस अभी बाहर आने ही वाला था।" बूढ़ा - " मुझे तेरा सब हाल मालूम है। लगता है तेरे पंख निकल आए है। चल बाजार से आटा वगैरा लेकर आ। और जल्दी आना। और ध्यान रखना लोहे की एक छड़ चूल्हे में गरम हो रही है । तुझे बखूबी मालूम है की अगर तूने पहले जैसी गुस्ताखी की तो तेरा क्या हाल होगा।" अजीत सिंह - " जी आका मैं अभी आ जाऊंगा।" उस बूढ़े ने उसकी और कुछ असरफियां फेंक दी और चला गया। अजीत सिंह ने कंपकंपाते हाथों से उन असर्फियो को उठाया और कंधे पर अपना थैला टांग बाजार की तरफ लड़खड़ाते हुए कदमों से निकल पड़ा। उसे याद आने लगा की किस तरह उसके जिगरी यार सुजीत सिह ने उसे भागने की सलाह दी थी। इस अत्याचार से बचने के लिए वो बेचारा जंगलों से होकर भागा भी था मगर अफसोस उस आका के बच्चे को कानो कान ये खबर हो गई और उसने अपने दो लौड़े उसके पीछे लगा दिए। जंगलों से भागते हुए उसके पैर में कांटा चूब गया और वो वो चिल्लाता हुआ वहीं पर ढेर होकर रह गया। अंतत उसे पकड़ कर आका के पास पहुंचा दिया। उस बूढ़े ने अजीत सिंह की ऐसी पिटाई की की वो आज भी उस पिटाई को याद करता है तो उसके पसीने छूट जाते हैं वो थर थर कांपने लगता है। अब तो वो फतेहगढ़ से भागने के बारे में सोचने से भी डरता है। इस भरे शहर फतेहगढ़ में उसका एक ही दोस्त था सुजीत सिंह। अब उसने भी उसे इस आफत में डाल दिया था तो जिंदगी से एक शिकायत तो बनती ही है।। To be continue.....। ✍️✍️भूपेंद्र सिंह रामगढ़िया।।