मोहित पिपरोनियाँ 30 Mar 2023 कविताएँ अन्य मंजिल को पाने आया हूँ मंजिल को पाकर जाऊंगा, मंजिल मिलना मुश्किल क्यों है। मुजे मेरी मंजिल क्यों नही मिल रही, में कैसे अपनी मंजिल पा सकता हूँ, मेरे इश्क़ की मंजिल कब मिलेगी, मंजिल पाना कैसे मुमकिन है। मंजिल, मंजिल की कहानियां, बो मिली ओर मुजे मेरी मंजिल मिल गई, आज कल मंजिल मिलना कितना मुश्किल है।, अब तो मेरी मंजिल आजा 10245 1 5 Hindi :: हिंदी
मंजिल को पाने आया हूँ मंजिल को पाकर जाऊंगा नेक इरादे ओर सच्ची मेहनत से कुछ करके दिखलाऊंगा मंजिल को पाने आया हूँ मंजिल को पाकर जाऊंगा मंजिल मेरी मुश्किल है फिर भी कोशिश करते जाऊंगा रस्ते के कांटो पर बिना रुके में चलते जाऊंगा कोशिश करते रहना तुम मुजे गिराने की गिरते गिरते हर बार खड़ा मैं हो जाऊंगा मंजिल को पाने आया हूँ मंजिल को पाकर जाऊंगा लोगो का काम है कहते रहना उनको तो कहते रहना है मुश्किल से लड़ना मेरी आदत है में लड़ते लड़ते एक दिप नया जलाऊंगा मंजिल को पाने आया हूँ मंजिल को पाकर जाऊंगा वक्त में इतनी ताकत है बदलना उसकी आदत है वक्त से मुझको लड़ना । अरे उसको ही तो बदलना है। सिख लिया है। वक्त से लड़ना ।क्या क्या इसने मुजको सिखालाया है। मेरे अंदर क्या है ।इसने ही मुजको बतलाया है। ना जाने कितनी रातों के सबरे एक साथ में लाया हूँ मुजमे क्या हुनर है। दुनिया को अब बतलाने आया हूँ तुम लाते रहना दौर अपना ।में अपना एक नया जमाना लेकर आऊंगा मंजिल मेरी मुश्किल है फिर भी कोशिश करते जाऊंगा मंजिल को पाने आया हूँ मंजिल को पाकर जाऊंगा चित्रण-रमित मोहित(मोहित पिपरोनियाँ)
1 year ago