Archana Singh 12 May 2023 कहानियाँ समाजिक 5426 0 Hindi :: हिंदी
नमस्ते दोस्तों 🙏🙏 आज का शीर्षक है...." क्रोध से बचिए " ! चलिए दोस्तों ! आपको एक कहानी बताती हूं और कहानी के माध्यम से ही आपको बताती हूं कि अगर क्रोध से हम बच सकते हैं तो बहुत ही महान और ज्ञानी कहला सकते हैं । जिसने अपने क्रोध पर विजय पा लिया है उसने आधा दुनिया ही जीत लिया । लोगों के दिलों पर उनका राज हो जाता है । तो चलिए ! आपको विश्वामित्र और महर्षि वशिष्ट जी की कहानी सुनाते हैं । विश्वामित्र जी का महर्षि वशिष्ठ से बहुत झगड़ा था । विश्वामित्र विद्वान थे , उन्होंने बहुत तप भी किया था । पहले वो एक महाराजा थे , फिर उन्होंने अपने राजपाट से क्षुब्ध होकर साधु का जीवन जीना शुरू कर दिया । महर्षि वशिष्ठ सदा उनको " राजर्षि " कहते थे । विश्वामित्र कहते थे ---- " मैंने ब्राह्मणों जैसे सभी कर्म किए हैं , मुझे महर्षि कहो " । वशिष्ट जी मानते नहीं थे । वे कहते थे ----" तुम्हारे अंदर आज भी क्रोध बहुत ज्यादा भरा हुआ है । तुम राजर्षि हो । ये क्रोध बहुत बुरी बला है । सवा करोड़ नहीं , सवा अरब गायत्री मंत्र जाप कर ले , एक बार का क्रोध इसके सारे फल को नष्ट कर देता है " । विश्वामित्र वास्तव में बहुत क्रोधित थे । क्रोध में उन्होंने सोचा कि " मैं इस महर्षि वशिष्ठ को ही मार डालूंगा , फिर मुझे महर्षि की जगह राजर्षि कहने वाला कोई नहीं रहेगा " । ऐसा सोच कर वो 1 दिन कटार लेकर उस वृक्ष पर जा बैठे , जिसके नीचे महर्षि वशिष्ठ बैठकर अपने शिष्यों को पढ़ाते थे । शिष्य आए , वृक्ष के नीचे बैठ गए । महर्षि वशिष्ठ जी भी अपने आसन पर विराजमान हो गए । संध्या का मेला था । आकाश में पूर्णमासी की चांद निकल आया था । उसी पेड़ पर बैठे विश्वामित्र सोच रहे थे कि अभी सब विद्यार्थी चले जाएंगे और वशिष्ठ तब अकेले रह जाएंगे , फिर मैं नीचे उतर कर एक ही वार में अपने शत्रु का अंत कर दूंगा " । एक विद्यार्थी ने पूर्णिमा के चांद की ओर देखकर कहा : " गुरुदेव ! ये कितना सुंदर और शीतल चांद है । वाह ! कितना मनोहर दृश्य है " । वशिष्ट जी ने चांद की ओर देखे ,,,, फिर बोले : " यदि तुम ऋषि विश्वामित्र को देखो , तो इस चंद्रमा को भूल जाओगे । ये चंद्रमा सुंदर अवश्य है , परंतु ऋषि विश्वामित्र इससे भी अधिक सुंदर हैं । यदि उनके अंदर क्रोध का कलंक ना हो तो वो सूर्य की भांति चमक उठेंगे " । विद्यार्थी ने कहा : " गुरुवर ! वो तो आपके बहुत बड़े शत्रु हैं । हर स्थान पर आपकी निंदा करते हैं । आपको अपना शत्रु बताते हैं " । वशिष्ट जी बोले :" मैं जानता हूं कि वो मुझसे अधिक विद्वान है और तपस्वी है एवं मुझसे अधिक महान भी है ,,,,, ये मेरा माथा भी उनके चरणों में झुकता है " । वृक्ष पर बैठे विश्वामित्र इस बात को सुनकर चौक पड़े -----? वो तो बैठे ही थे इसलिए कि वशिष्ठ जी को मार डाले और वशिष्ठ थे कि उनकी प्रशंसा करते नहीं थक रहे थे । विश्वामित्र एकदम से नीचे कूद पड़े । कटार को एक ओर फेंक दिया और वशिष्ट जी के चरणों में गिरकर बोले : " मुझे क्षमा कर दीजिए ऋषि मुनि " । तब वशिष्ट जी प्यार से उन्हें उठाकर बोले ... " उठो ब्रह्मर्षि " ! तब विश्वामित्र ने आश्चर्य से कहा : " ब्रह्मर्षि ....? आपने मुझे " ब्रह्मर्षि " कहा ....? परंतु आप तो ये मानते नहीं हैं । वशिष्ट जी बोले :" आज से तुम " ब्रह्मर्षि " हुए । हे महापुरुष ! तुम्हारे अंदर जो क्रोध रूपी चांडाल था , आज वो निकल गया और जब दिमाग में क्रोध ही नहीं है तो वह " ब्रह्मर्षि " ही कहलाता है ..... क्योंकि ब्रह्मर्षि की दिमाग में लेह मात्र का भी क्रोध नहीं रहता है और आज मैंने तुममे वही पाया है , इसलिए आज से तुम मेरे लिए " ब्रह्मर्षि " हो । तो देखा दोस्तों ! जीवन से क्रोध को निकाल देने से आदमी महापुरुष बन सकता है , तो चलिए ! आज हम सभी मिलकर ये कोशिश करते हैं कि हम भी अपने जीवन से , अपने मन से क्रोध रूपी चांडाल को निकाल बाहर करेंगे और प्रेम तथा सद्भावना का संदेश पूरे देश में फैलाएंगे । धन्यवाद दोस्तों 🙏🙏💐💐