Join Us:
20 मई स्पेशल -इंटरनेट पर कविता कहानी और लेख लिखकर पैसे कमाएं - आपके लिए सबसे बढ़िया मौका साहित्य लाइव की वेबसाइट हुई और अधिक बेहतरीन और एडवांस साहित्य लाइव पर किसी भी तकनीकी सहयोग या अन्य समस्याओं के लिए सम्पर्क करें

बदलाव-मैं लौटा अपने गाँव में जब नहीं मिला मुझे देखने को कोई खेत

पिन्दु कुमार 15 Oct 2023 कविताएँ समाजिक गाँव से शहर में बदलाव 6330 0 Hindi :: हिंदी

मैं लौटा अपने गाँव में जब
नहीं मिला मुझे देखने को
कोई खेत -खलिहान
भैया - भाभी , चाचा -चाची
सब बन गए थे नया  दुकानदार
बाग-बगीचा , पार्क बन गए
नहर हो गई नाला में तकदील
जहाँ - तहाँ दुकाने खुल गई
नहीं रहा बच्चों को खेलने का
छोटा सा भी एक मैदान
जिस जगह मैं खेलता था
अपने बचपन में दोस्तों के साथ
चीका या कबड्डी
वहाँ बन गई बसें तथा गाड़ियाँ
के ठहरने का स्टैण्ड
जहाँ थी कच्ची फूंस , मिट्टी
तथा पुआलें से बनी
भिन्न -भिन्न तरह की झोपड़ियाँ
वहाँ बन गया पक्का ईटें , सिमेंट
तथा छड़ों से बना मकान
जिस पगडंडियों के सहारे मैं
अपने घर को जाता
वो हो गई पुलों में तकदील
टूटी - फूटी ,जहाँ - तहाँ  ,बड़े- बड़े
गड्डे थे सड़कें पे
वो हो गए चकाचक शनाहार
युवा लेखक - पिन्टु कुमार

Comments & Reviews

Post a comment

Login to post a comment!

Related Articles

शक्ति जब मिले इच्छाओं की, जो चाहें सो हांसिल कर कर लें। आवश्यकताएं अनन्त को भी, एक हद तक प्राप्त कर लें। शक्ति जब मिले इच्छाओं की, आसमा read more >>
Join Us: