Ratan kirtaniya 30 Mar 2023 कविताएँ राजनितिक देश में सशक्तिकरण अति अवश्य है । 12818 0 Hindi :: हिंदी
वतन में लोकतंत्र का राज है ; छिपा कई राज़ हैंं , आ पड़ा चुनाव - खड़ा अंचल के मीर ; है पहलवान वीर , उम्मीदवार एक से एक बड़ा ; यह पहलवान अपना ठप्पा लेकर - यह पहलवान अपना छप्पा लेकर ; दोनों दूर दुरन्त से - पहलवान मीर वेश में - चुनाव लड़ेगा अब देश में , तैयार है अखा़ड़ा ; लेकर अपना हाव - भाव - कर रहे हैं बखेड़ा । चुनाव में आमने - सामने - उम्मीदवारों की पंगा ; जुलूस निकल रहे हैं - लेकर ढोल - डंका , रंग - बिरंगों रैली हैं - मनोहर गात ; नल - चुम्बी कद , अन्तर् में मैली हैं । लड़ाई में होता जीत एक का - दो पहलू से बना सिक्का , सृष्टि का चिरंतन रीत ; एक हारा तो एक की जीत , लोकतंत्र के होठों पे - अभ्युदय का गीत , उर के हर अभिलाषा , मीर की प्रतिज्ञा अनुराग - जीत के जला के बनाया राक । चुनाव जो जीत जाएगा - गद्दी पे बैठेगा - दशानन रावण कहलाएगा , कंश , जरासन्ध , हिरण्यकश्यप , दुशासन - सब मिल - जुल के - चुनाव में खिल के - पकड़ के हाथ - दे के साथ - चलाएगा देश में शासन । गद्दी पे बैठा रावण - कहाँ सुग्रीव - कहाँ तेरा पुत्र हनुमान - खुद को ही बचाना पड़ेगा ; प्राण - मान - सम्मान - देखानी है शक्ति तेरी कितनी बाजुओं में हैं - जग जाओं सीता - जगाओं नारी शक्ति - फैलाओं देश भक्ति - मिलेगी तुझे वरदान ; कहाँ है पुत्र हनुमान ; खुद को रखना पड़ेगा मान , करके नारी शक्ति का आह्वान , तुझे ही करना होगा लंका दहन , यज्ञ नहींं ! करो देश भक्ति , छोड़ो लाज - शर्म - छोड़ो मत धर्म , बढ़ाओं अपना शान , रावण है अधर्मी - लंका छोड़ चुका विभीषण - राजा रावण कर रहा देश में शासन । द्रौपदी बढ़ाओं अपना हाथ - सुधि होगी - द्वापर में क्या हुईं थी तेरी साथ ? सुन रे द्रौपदी - तुझे जुआ में खेला ! तेरा पति - सब ने देखा - भीष्म पितामह - थे जितने नर - नारी , सुधि है दुर्दिन तुम्हारी , नहीं देखा धृतराष्ट्र और श्रीमती , सोचो जरा - क्यों किस कारण थे सब विवश ? दुर्योधन, दुशासन में थे कौन सी तृष्णा ; नव अभिलाषा ; हो गया निस्तब्धता भू - थल - कयता से कंप उठी तेरी वक्षःस्थल , वशीभूत थी सभा मदमाती , जल उठा आलोकिक ज्योति , क्या होती तेरी - अगर न होता रुक्मणी की पति ; तू कितनी लाचर थी - क्या लीला किया सृष्टि पिता ? रचा दे महा भारत ; रण भूमि में रचा गीता , सुन रे द्रौपदी - नहींं तू लाचर , तुझ में शक्ति अपार , तू ही रचा लीला - पव कर दे लाल किला , भारत को बना दे महान भारत , तू ही रचा दे - चुनाव - भू में रावण जीता , भ्रष्टाचार की रण - भू में - इस युग में तू रचा दे गीता , जला दे उसे ! सजा के चिता । गद्दी पे बैठ के रावण - चला के शर , लूट रहा वतन ; तब बना स्वर्ण लंका , समीर हुआ गरल - देखों बजा रहा है - भ्रष्टाचार की ढोल - डंका , क्रांति दहक रहा है - जल जाएगा तेरा लंका , मत समझ ! हे अहंकारी - मनोमोहिनी पर अबल नहीं नारी , चुनाव जो तू जीता ; तू अबल नहीं - बाजुओं में बल कितनी - देखा दे सीता । न उत्पात मचा रे कंश ; आ रहा है श्री हरि , कर देगा निर्वंश , जब से राज मिला है , उपवन में काँटा खिला है ; चतुर्दिक फैला हाहाकार , निष्पाप शिशुओं को मारा - अमर का अभिलाषा - था तुझे अमृत का प्यासा , रह गया अधूरा , भर चुका तेरा घड़ा - तू भी भर ले मीर - वतन लूट के और खाओं खीर , अन्त होगा खेल सारा ; दिवस भर जाएगा , अधर्मी का घड़ा । हिरण्यकश्यप जिसे जना है , श्री हरि का अंश है - ए ओ न जाना है , प्रहलाद के कारण - होलिका कि दहन , चलाया तरह - तरह की चाल , चला न एक भी चाल ; अमर का मिला वरदान - था तू कितना नादान , चाल तेरा नाकाम ; काल सामने खड़ा - जब लिया नन्दन ने श्री हरि का नाम , बस वतन में क्रांति की बाकी है , बेला से होगा सब कुछ - क्रांति वीर जला के - भस्म कर देगा - तेरा सब कुछ । जरासंध को जैसा चीरा था - क्रांति की तोली - तुझे पकड़ के मौली , चीर के - वतन में लाएगा , कादंबिनी - जलधाम - गिरि को चीर कर , उज्जलीत दिनकर ।