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स्वर्ग

Rambriksh Bahadurpuri 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक #Rambriksh Bahadurpuri #Rambriksh Bahadurpuri kavita #Rambriksh Bahadurpuri Ambedkar Nagar #Rambriksh Bahadurpuri Ambedkar Nagar poetry #Ambedkar Nagar poetry #Swarg per kavita 7949 0 Hindi :: हिंदी

                स्वर्ग -कविता 

स्वर्ग   कहीं   ना   और,  बसा  खुद  के  अंतर में 
खोज   रहे  दिन- रात  जिसे  हम  उस  अम्बर में 
सुख   ही   है   वह   स्वर्ग  जिसे  हम  ढूंढे  ऊपर 
बसा    हमारे    सुंदर   तन - मन   के   ही  अंदर 
काट    छांट    कर    मूर्तिकार   जैसे   पत्थर को 
दे    देता    है   रूप   अलग   गढ़कर  मंथर  को 
दंभ    द्वेष    पाखंड    छांट   अपने    अंतर   के
बिना  मरे ही दिख जायेगा मन में स्वर्ग अम्बर के 
लगे    बिमारी   में   चीनी   कड़ुआ   तीखी   भी
मन   में   चले   जब   द्वंद्व  का  खीचा खींची सी
वही  नर्क  फिर   हो  जाता  असली  जीवन  की
कर   देते   जब   व्यर्थ  वही   जीवन  पावन  सी
आपस   का   जब   प्रेम   बसे  सबके  अपनों में
कभी  उठे   न  भेद  भाव   भूल  कर   सपनों  में
नही    कोई    हो    गैर   ना    कोई   दुश्मन   हो
हो    आपस   में    सौहार्द   प्रेम   अपनापन   हो 
देव    लोक   हो   जाता  है  घर   आगन  अपना 
मात   पिता  परमेश्वर  जब   जिस  बसते  अगना 
समझ  समझ  कर  समझ  जरा  पहले  अपने में 
बिन   ढूंढ़े   ही   स्वर्ग   दिखे   दिन  में  सपने  में
भर   ले   मन   में  भाव  मस्तिष्क  तन  मंतर  में 
स्वर्ग   कहीं   ना   और,  बसा  खुद  के  अंतर में 


रचनाकार -रामबृक्ष बहादुरपुरी अम्बेडकरनगर यू पी 




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