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व्यंग्य-कथाः

virendra kumar dewangan 30 Mar 2023 कहानियाँ हास्य-व्यंग Satire 35691 0 Hindi :: हिंदी

	मुझ अभागे के घर जब बेटा पैदा हुआ, तब मैं खुशी से झूम उठा। जश्न मनाया; मिठाइयां बांटा; फटाखे फोड़ा।
	वक्त गुजरता गया और मैं खेती-किसानी में मशगुल हो गया। फसलों की बुआई, निंदाई, गुड़ाई और कटाई; बैलों की सानी-पानी, खेतों में खाद और घर-गृहस्थी के जाल में; मैं इस कदर उलझा कि मुझे पता ही नहीं चला कि बेटा कब दस बरस का हो गया।
	एक दिन मैंने गौर किया कि खेती के लिए खरीदकर लाया गया यूरिया बगैर इस्तेमाल किए कम हो रहा है। ऐसे मौके पर स्वाभाविक रूप से नौकर पर शक होता है, जो मुझे भी हुआ। 
मैंने उससे जानने के गरज से पूछा, तो वह गिड़गिड़ाकर बोला, ‘‘बाल-बच्चे मर जाएं; धरती निगल जाए; यदि मैंने चोरी की है तो।’’
	पत्नी से पूछा, तो वह मुझपर ही बरस पड़ी, ‘‘क्या बकवास करते हो? खेत में खुद डाले आते हो और घर में कोहराम मचाते हो।’’
	मैं हैरान, परेशान था कि आखिरकार यूरिया जा कहां रहा है? धरती निगल रही है या आसमान ले उड़ रहा है! मैं इसी उधेड़बुन में था कि मैंने एक दिन देखा, मेरा लाडला भंडारगृह से कुछ चबाता हुआ निकल रहा है। 
मुझे खटका हुआ। मैं भंडारगृह फौरन पहुंचा। वहां देखा, तो आज फिर कुछ यूरिया कम दिखाई दे रहा था। अब, मेरा शक यकीन में बदलने लगा कि हो-न- हो यही यूरियाखोर है।
	पूछताछ करने पर उसने जो कहा उससे मेरे होश फाख्ता हो गए, ‘‘मैं पिछले पांच साल से यूरिया डकार रहा हूं। पर खेद का विषय है कि ‘आम जनता की नाई’ आपको अभी पता चल रहा है। बड़ी कमजोर निगाहें हैं; तभी तो देश का बंठाधार हो रहा है।’’
	यह सुनकर मेरे रोंगटे खड़े हो गए। कारण कि मैंने सुन रखा था कि यूरिया मानव शरीर के लिए घातक होता है। वह स्लो पायजन का काम करता है। कच्ची दारू में मिला दो, तो दारू को तेज करता है। तभी तो कच्ची दारूखोरों का खून पानी होने लगता है। वे निस्तेज दिखने लगते हैं।
	मैं उसे एक डाक्टर के पास ले गया। उनसे पूछा, ‘‘डाक्टर साहब, यह इकलौता किसी ‘माननीय’ की नाई’ पांच बरस से यूरिया खा कर रहा है। कृपया इसकी जांच-पड़ताल और इलाज तो करें!’’
	डाक्टर मुझे ऊपर से नीचे यूं घूरा, गोया कह रहा हो कि बड़े बौड़म हो तुम! निज बेटा, किसी नेता की नाई एक सत्र से यूरिया खा रहा है और आपको हवा तक नहीं लग रहा है। ऐसे में क्या होगा इस मुल्क का? पर वह यह कटु सत्य कह न सका। कहता, तो घर आए ग्राहक के रुठ जाने का डर था।
	वह झटपट स्टेथोस्कोप उठाया। उसे बालक के थाती और पीठ पर लगाया। नब्ज टटोला। मुंह, जीभ और नाक का आंकलन किया। कंठ को हौले से दबाया। 
पश्चात् एक पर्ची पर चंद लकीरें उकेर कर बोला, ‘‘पहले ब्लड, यूरिन और स्टूल का टेस्ट कराओ। छाती और पीठ के एक्सरे लो; फिर रिपोर्ट लेकर आओ। तभी कुछ बता सकूंगा।’’
	जब ओखली में सिर दिया, तो मूसल से डरना कैसा? मै मरता क्या न करता; नालायक को लेकर पैथोलाजी लैब गया। वहां सबका सैम्पल दिलवाया। तीन धंटे के बाद जब रिपोर्ट लेकर डाक्टर के पास पहुंचा, तो डाक्टर रिपोर्ट देखकर उछल पड़ा। 
रिपोर्ट को लहराते हुए बोला,‘‘ये तो कमाल हो गया। तुम कह रहे हो कि लाडला पांच साल से यूरिया खा रहा है। पर रिपोर्ट कह रही है कि यूरिया के भक्षण का लक्षण नहीं है।’’
	यह सुनकर मैं सिटपिटा गया। मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि अब उन्हें कैसे यकीन दिलाऊं कि औलाद को इस क्षेत्र में महारत हासिल हो चुका है। 
कहा, ‘‘हाथ कंगन को आरसी क्या? सामने है लड़का। स्वयं पुष्टि कर लीजिए।’’
	इसपर डाक्टर लड़के की ओर मुखातिब होकर मजाकिए लहजे में पूछा, ‘‘क्यों बेटा, सच्ची-सच्ची बता! तू यूरिया खाता है ना!!’’
	‘‘...और नहीं तो क्या? मैं यूरिया खाता हूं। मुझे इसको खाने में बड़ा मजा आता है।’’ बालक बेझिझक बोला, तो डाक्टर की हंसी छूट गई। 
हंसते-हंसते बोला, ‘‘ये हुई न मरदोंवाली बात। मेरे भानजे की तरह। मेरा भांजा भी बचपन में खूब शक्कर खाता था। एक बार में किलो-किलो। मना करने पर रोता-चीखता-चिल्लाता था। पर बाद में फख्र हुआ कि वह शक्कर खाने और उसे हजम करने का विश्व रिकार्ड बनाया है। उसने जिस तरीके से शक्कर घोटाला किया है, उसको करने के लिए बहुतों को कई-कई जनम लेने पड़ेंगे। ’’	
	मै डाक्टर का मुंह तकता रह गया। उसका कथन जारी था, ‘‘इसमें घबराने की कोई बात नहीं। जब सारा देश लोहा, सीमेंट, छड़, बांध, पुल, सड़क, पनडुब्बी, खेल मैदान, चारा, वरदी और न जाने क्या-क्या खा-खाकर पचा रहा है, तो आपका लाल भी यूरिया खाकर मजे से पचा लेगा। मैं तो कहता हूूं कि यह बड़ा होनहार निकलेगा और यूरिया सहित वह सारी चीजें पचा लेगा, जो दूसरे पचा नहीं पाते और सपड़े जाते हैं। मेरी दुआ उसके साथ है।’’ 
मैं अवाक सुनता भर रह गया।
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अनुरोध है कि लेखक के द्वारा वृहद पाकेट नावेल ‘पंचायत’ लिखा जा रहा है, जिसको गूगल क्रोम, प्ले स्टोर के माध्यम से writer.pocketnovel.com पर  ‘‘पंचायत, veerendra kumar dewangan से सर्च कर और पाकेट नावेल के चेप्टरों को प्रतिदिन पढ़कर उपन्यास का आनंद उठाया जा सकता है तथा लाईक, कमेंट व शेयर किया जा सकता है। आपके प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहेगी।

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