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मीली हवाओं मे खूशबू

Amit Kumar prasad 30 Mar 2023 कविताएँ देश-प्रेम This poem is even on the inspiration. 16065 0 Hindi :: हिंदी

मीली हवाओं मे खूशबू, 
मूझको लगता कूछ यहां वहां! 
है एक पहर मे र्दद कई, 
कूछ अपनो सा कूछ सपनो सा!! 
                      झकझोर रही है दृश्य सभी, 
                      अंतरमन विश्व को जगा रही! 
                      उत्कंठाओं की अमर कूंज, 
                      मानवता जागरण करा रही!! 
है विश्व श्लोक का प्रणेता, 
सत्यूग, द्वापर और त्रेता से! 
होता जगती का अभी वादन, 
पून्य शुलोक अभीनेता से!! 
                        कर कर्मो को महा धाम, 
                        हर धाम को कर्म बनाया है! 
                        कर्मो की धरा इस भारत को, 
                        हमने अजयी विश्व बनाया है!! 
है उज्जवल रत्नेश मेरा, 
हिम गीरी की छाया हैं! 
गंगा - यमूना है नि:स्वार्थ धर्म, 
कर्म पे जिसकी माया है!! 
                        शीव विलिन भक्ती मे लीन, 
                        डमरू के ताल पे नचा रहे! 
                        हर हर महादेव नही केवल, 
                        हर हर गंगे संसार कहे!!
खूद मलीन होकर भी ये, 
सबका पाप मिटाती है! 
अंत काल शीव के उपर, 
अपना भार मिटाती है!! 
                    अधम पाप हर लेती है ध्यान, जाप, 
                    जल पान करे होती है जगती का! 
                    क्षरण, भरण कूछ दमनो सा, 
                     कूछ नमनो सा!! 
मिलती है हवाओं मे खूशबू, 
मूझको लगता कूछ यहां वहां! 
है एक पहर मे दर्द कई, 
कूछ अपनो सा कूछ सपनो सा!! 

‌ Poet : Amit Kumar Prasad
 कवी   : अमित कुमार प्रशाद

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