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महा पूरूषोत्तम-शीव संकर

Amit Kumar prasad 30 Mar 2023 कविताएँ धार्मिक This is a inspirational poem and religious. In this poem has been done describe to subjected of Lord Shiva. Now you have all taken enjoy to it poem.. Jai Hind. 14106 0 Hindi :: हिंदी

महा पूरूषोतम शीव संकर, 
दया दान के दाता है! 
पूरुषार्थ मर्यादा के पालक, 
शीव चरण मे शीश नवाता है!! 
                       जन्म - जन्म के दू:ख: हरता, 
                       हर कष्टो को हर जातें है! 
                       राम भी झूंक कर नमन करे, 
                       जो शीव का भक्त कहलातें  है!! 
अपमान का कोई भय ना रखे, 
सम्मान का नही है मोह तनिक! 
महाकाल काल हरने वाले, 
जो बैरागी कहलाता है!! 
                        जन्म - जन्म का प्यार अमर, 
                        शीव पार्वती का संगम है! 
                        राम से पहले शीव पूरूषोतम, 
                        जो औड़रदानी कहलाता है!! 
शूर, अशूर, महा मूनी चरणों में , 
है दिव्यार्थ का कार्य किए! 
भष्म क्षार मलने वाले, 
भूतनाथ कहलाता है!! 
                        दश अवतार शीव शंकर का, 
                        ग्यारह बजरंग का रूप धरा! 
                        पूरूषोतम काज स्वारन को, 
                        बानर राजा भी बन बैठा!! 
मार्कनड को यम से बचा लिए, 
मृतूंजय नाम के धारक हैं! 
तांडव करता मा सती कि खातीर, 
सतीयों के सत के उद्धारक हैं!! 
                          है जन्म जन्म का प्यार अमीत, 
                          शीव महादेव तो अजन्मा है! 
                          न जन्म लिए ना मरे कभी, 
                          मेरे भोले मूक्ती के दाता है!! 
रावन को अमर भी कर डाला, 
थोड़े प्रेम और श्रद्धा से! 
भष्म कर दिए काम देव, 
महा योग के धरता है!! 
                        समाधी मे हर पल रहे लीन, 
                        राम रमेती रामा वते!
                        रमे रहे शीव चरणो मे रिषी, 
                        शीव ज्ञान मूक्ती के दाता है!! 
शक्ती देती मा पार्वती, 
आदि शक्ती है नाम उनका! 
भवानी नाम जप लेने से, 
मन पवित्र हो जाता है!! 
                       शीव नाम जपो शीव नाम जपो, 
                       जन्मो के पाप मीट जाएंगें! 
                       सबसे बड़े दानी शीव शंकर, 
                       वो नमन से खूश हो जाएंगें!! 
पी लिया विष जल मंथन का, 
धरती का प्राण बचाने को! 
कंठ पे रोका विष का धार, 
वो नील कंठ कहलातें हैं!! 
                        डमरु त्रिशूल के धारक है, 
                        गले मे सर्प का हार रहे! 
                        चन्द्र मूकूट वे गंगाधर, 
                        जटाधरा उन्हे विश्व कहे!! 
थोड़ी भक्ती से प्रशन्न रहे, 
ऐसें ही हैं मेरे महादेव! 
मै सेवक शीव शक्ती का, 
शीव जी को माना ईष्ट देव!! 
                        जीवों की भक्ती शीव भक्ती, 
                         जीव मे शीव का रुप धरा! 
                       तीनो लोको के पालन कर्ता, 
                       इसलिए है संकर नाम धरा!! 
जीस हृदय मे शीव की भक्ती, 
उस चरित्र मे पूरूषार्थ समाता है! 
पूरूषार्थ मर्यादा के पालक, 
शीव चरण मे शीश नवाता है!! 

ऊम श्री पूरूषोतमाय नम: हर हर महादेव

Poet  :-   Amit Kumar Prasad
कवी    :-  अमित  कुमार  प्रशाद

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