Uday singh kushwah 02 Jul 2023 ग़ज़ल समाजिक गूगल याहू बिंग 5649 0 Hindi :: हिंदी
इश्क की गलियों से होता हुआ कितनी रसाकसी के बाद आज पहुंचा हूं मुकाम पे....! बहुत कुछ मिलने की उम्मीद में सब कुछ गवा वैठा हूं...! राह बदर राह डूढ़ता फिरा हूं कयी जमाने तक ....! कयी बार किनारे लौट आया हूं मिलते मिलते बचा हूं कयी मर्तबा साहिल की गोद में वैठा हूं ... बतियाता हूं अपने आप से... क ई पहर तक... दूसरे साहिल को निहारता रहा हूं दोंनों साहिलो के बीच वहती नदी को् अपनी हदों में वहते हुए... उदय सिंह कुशवाहा ग्वालियर मध्यप्रदेश