Samar Singh 12 Jul 2023 कविताएँ प्यार-महोब्बत एक नजर में प्रेम हुआ, और दूसरी नजर में हवा हो गयी। 4738 0 Hindi :: हिंदी
दूर तक निगाह थी, दिखती नहीं राह थी। गुमसुम सा बैठा था बस में। बलखा के बस हुई खड़ी, लहरा के वो चढ़ी। नजर क्या लड़ी, नहीं रहा मेरा दिल मेरे वश में। गुमसुम सा बैठा था बस में।। क्या शोख़ अदायें, हवा में जुल्फ लहराए। रूप ऐसा, पल- पल में दिवाना बनाये। डूबता रहा मेरा दिल प्रेम रस में। गुमसुम सा बैठा था बस में।। हौले- हौले वो पलके उठाये, एक लमहे के लिए नजर गड़ाये। रह - रह के अपने दुपट्टे बनाये, छेड़ दूँ दिल की बात या नहीं, रहा इसी कशमकश में। गुमसुम सा बैठा था बस में।। भीड़ इतनी कि सैलाब था, वो बस मेरा खाब था। कब उतर गयी बस से, कहाँ गुम हुआ मेरा जवाब था। नशा उतरा चढ़ा था बरबस में। गुमसुम सा बैठा था बस में।। रचनाकार- समर सिंह " समीर G "