Saurabh Shukla 30 Mar 2023 कविताएँ अन्य Google/ 35301 0 Hindi :: हिंदी
सार चल मुसाफ़िर तुझे दूर जाना है ! रात की गहराइयों में खोकर , ना जाने किस किस सपने को अपना बनाना है । अल्फाजों की रंगत से न जाने और कितने पन्नो को रंगीन बनाना है ।। चल मुसाफ़िर तुझे दूर तक जाना है ! मुश्किलें आती रहेंगी , क्या इनसे तुझे हार जाना है । अरे हालातो से भी तो उबर कर आना है ।। उठ जा ओ मुसाफिर ,तुझे दूर तक जाना है ! तू सौरभ है इस उपवन का , तुझे इस जग को भी तो महकाना है । गगन चूमती इन इमारतों पर अपना भी तो ठिकाना बनाना है । चल मुसाफ़िर दूर जाना है ! हर रोज एक एक कदम आगे बढ़ाना है । थकने न दे खुद को ऐसे लड़ते हुए खुद से आगे बढ़ जाना हैं। । चल ओ तुझे दूर तक जाना है !! पहले कदम पर मन तुझे बहलाएगा , तुझे मन को बहलाना है । सोच तेरे पीछे आने वालों के रास्तों को भी तो तुझे आसान बनाना है ।। कविता में अब प्रेम न लिख , कविता को ही प्रेम बनाना है ।।। उठ मुसाफ़िर तुझे दूर जाना है ! हर हार का जश्न मनाना है ,राह पर पड़े कंकड़ को चूम का माथे पर लगाना है । कंकड़ कंकड़ जोड़ कर ,तुझे आशियाना बनाना है ।। अरे क्या कठिन है इसमें ,ये कहते हुए आगे बढ़ जाना है ।।। चल मुसाफ़िर तुझे दूर तक जाना है !!!