राहुल गर्ग 21 Mar 2024 शायरी समाजिक Rahulvision1.blogspot.com 7150 0 Hindi :: हिंदी
वो बातों में शब्दों को कुछ ऐसे पिरोता है। कि जैसे हीरे के पानी से मोती को धोता है ।। मैं निशब्द हूँ उसके फलसफा-ए-जिंदगी को देखकर। कि दूसरों की नींद खराब कर, खुद चैन से सोता है ।। गुरूर में है वो अपने कि, काफिला मेरे पीछे ही आएगा। नहीं जानता, कि गुनाह के रास्ते में आदमी अकेला ही चलता है ।। मैं शुक्रगुज़ार हूँ अपने खुदा के जिंदगी-ए-दस्तूर का । हर कोई यहाँ वही काटता है, जो खुद अहम से बोता है।। जरा सा भी इल्म हो तो अभी भी ठहर जा। उसका कहर बरस गया तो, हर आदमी बाद में रोता है।।