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सपने में बचपन -बैठा गांव के आंगन में

Raysingh Madansingh Rauthan 14 Dec 2023 कविताएँ बाल-साहित्य "वो बचपन के दिन" 9422 0 Hindi :: हिंदी

" सपने में बचपन " 

तमस छाया  था मन में 
उदासी छायी थी तन में 
             चक्षु पटल झुके हुए 
              यादों में खोये हुए 
खो गया सपनो में 
सपनो से अपनों में 
            वादियों के हो गए 
            बचपन में खो गए 
बैठा गांव के आंगन में 
ममता के अंचल में 
            चिड़ियाँ चहकते हुए 
             फूल महकते हुए 
पहुँच गए बागानों में 
खेत और खलिहानो में 
            हाथ पकड़ खेलते हुए 
            कुछ  गुनगुनाते हुए 
कभी हरे भरे मैदानों में 
कही ऊँची नीची पहाड़ों में 
            यारों के संग पहुँच गए 
            खेल- खेल  खेलते हुए 
घाटी की जलधारों में 
पनघट पीपल की छाव में 
            बचपन बिताते हुए 
            मस्ती में झूमते हुए 
जगे जब सपने से 
पायी अपनी जगह में 
           याद वो दिन आते हुए 
            चक्षु अश्रु बहते हुए
न कभी अब बचपन में 
रह गया अब सपने में 
            गांव की याद आती हुई 
            मन झकझोरती हुई 
वो बचपन के दिनों में 
वो गांव की गलियों में 
             शायद कभी जा पाते
             पुराने दिन लौट आते 


            : -  रायसिंह मदनसिंह रौथाण

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