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कब्रिस्तान का चौकीदार-एक भयानक सुनसान और खामोशी में

भूपेंद्र सिंह 03 Jan 2024 कहानियाँ अन्य एक प्यार भरी भूतिया कहानी 9246 0 Hindi :: हिंदी

कहानी

               कब्रिस्तान का चौकीदार



  वो एक भयानक, सुनसान और खामोशी में डूबा हुआ  गांव था। उस गांव का नाम था खंडहरपुर। सुरेश नाम का एक युवा लड़का कुछ दिन के लिए अपनी नानी के पास रहने के लिए आया था।आज उसका इस वीरान से गांव में पहला ही दिन था। वो दोपहर के वक्त अपनी नानी से बोला" नानी मैं बाहर घूमने के लिए जा रहा हूं।" "बेटा चले तो जाओ पर रात होने से पहले वापिस लौट आना। हां और ज्यादा दूर मत निकल जाना।" "नानी आप फिक्र मत कीजिए मैं शाम होने से पहले ही लौट आऊंगा।"यह कहकर वह घर से बाहर घूमने के लिए निकल गया। गांव की शुरुआत एक जंगल से होती थी और उस जंगल की शुरुआत होती थी एक वीरान से कब्रिस्तान से। असल में सुरेश एक यायावर ही था। उसका काम ही था रातों को इधर उधर घूमना, रात में प्रकृति के अद्भुत नजारे देखना उसे बहुत अच्छा लगता था।उसे कहां जाना है उसका कोई लक्ष्य नहीं था वह तो बस चला जा रहा था। धीरे-धीरे चलते-चलते हुए वह उस खामोश और भयानक से कब्रिस्तान के पास पहुंच गया। उसने कब्रिस्तान को देखकर भी अनदेखा कर दिया। कब्रिस्तान को पार करके वह आगे जंगल के अंदर घुस गया। वह जंगल के अद्भुत नजारे देखने लगा। जंगल में घूमते घूमते वह काफी दूर निकल गया। घूमते घूमते उसे पता ही नहीं चला कि कब शाम होने को आ गई । उसे अचानक से याद आया कि उसे वापस अपने घर को भी जाना है । वह कुछ हड़बड़ाहट में वापस मुड़ पड़ा और धीरे-धीरे जंगल से बाहर अपने घर की ओर लौटने लगा। वह धीरे-धीरे चलते हुए जंगल से बाहर निकल आया। अंधेरा पहले से अधिक बढ़ गया था । वह जंगल से बाहर निकल कर कब्रिस्तान के पास पहुंच गया । कब्रिस्तान के चारों ओर चार दिवारी थी। उसने कब्रिस्तान में एक नजर दौड़ाई। कब्रिस्तान में एक अजीब और भयानक सी खामोशी और सन्नाटा छाया हुआ था। चारों तरफ सिर्फ अंधेरा ही नजर आ रहा था। यह दृश्य देखकर ऐसा लग रहा था मानो की सभी लाशे अपनी कब्रों में आराम से चैन की नींद सोई हुई हो। चारों तरफ सन्नाटा और एक अजीब सी खामोशी छाई हुई थी। हालांकि सुरेश रातों में ऐसे ही घूमता रहता था उसे डर तो नहीं लगता था मगर उस रात का सन्नाटा ही कुछ ऐसा था कि अगर कोई भी होता तो वह डर ही जाता। सुरेश को अचानक ही कब्रिस्तान के अंदर एक लाल सी आकृति खड़ी हुई नजर आई। पहले तो उसे समझ में ही नहीं आया की यह आकृति थी क्या कोई कपड़ा, कोई कब्र, कोई औरत, कोई लड़की, या फिर कोई डायन। सुरेश ने गौर से उस आकृति की ओर देखा। वह कोई लाल कपड़ों में लड़की थी। सुरेश के कदम न जाने क्यों अपने आप ही धीरे-धीरे उस लड़की की और बढ़ने लगे। वह लड़की भी धीरे-धीरे सुरेश की और बढ़ रही थी। सुरेश को पता ही नहीं चला की वो कब चलते-चलते कब्रिस्तान के अंदर पहुंच गया। सुरेश को अब भी उस अनजान सी लड़की चेहरा कुछ धुंधला सा नजर आ रहा था। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह कौन है? उस लड़की के पैरों के घुंघरू भी जोर-जोर से आवाज कर रहे थे । वह लड़की अब सुरेश के बिल्कुल पास आकर खड़ी हो गई । सुरेश उस लड़की की और देख कर दंग रह गया। उस लड़की की खूबसूरती देखकर वह मदहोश सा हो गया। रात के इतने भयानक और खतरनाक से अंधेरे में भी उस लड़की का चेहरा किसी हीरे की तरह चमक रहा था। सुरेश को वह लड़की साक्षात एक परी के समान नजर आ रही थी। उसने फिर से उस लड़की की और गौर से देखा। उस लड़की की पलकों के मसकारे, और उसकी होठों की लाली, उसके गले का चमकता मोतियों का हार, और उसके कान की बाली, यह सब कुछ देख कर सुरेश के चेहरे पर भी आ गई थी लाली।। सुरेश अब पूरी तरह से उस लड़की की खूबसूरती के माया जाल में खो गया। उस लड़की ने सुरेश की ओर शक भरी निगाहों से देखते हुए बहुत ही कोमल और मीठी आवाज में कहा "जी आप कौन हैं? और इतनी रात को इस कब्रिस्तान में क्या कर रहे हैं?" सुरेश ने लड़की के इस प्रश्न का कोई जवाब नहीं दिया क्योंकि वह तो पहले से ही लड़की की खूबसूरती के माया जाल में गोता लगा गया था। वह लड़की कुछ देर के लिए सुरेश के चेहरे की और ताकते रही और फिर कुछ जोर से बोलते हुए उसने फिर से पूछा "जी आप कौन हैं? और इतनी रात को इस कब्रिस्तान में क्या कर रहे हैं?" यह सुनते ही अचानक से सुरेश होश में आ गया। वह कुछ देर के लिए अपनी सोच में गुम सा हो गया फिर वह लड़की की ओर देखकर मुस्कुराते हुए बोला "जी मेरा नाम सुरेश है अपनी नानी के पास आया हुआ था। मैं तो बस यूं ही घूमने के लिए निकला था। मैं जंगल के काफी अंदर चला गया था। इसलिए लौटते वक्त काफी देर हो गई। मैं तो बस वापिस लौट ही रहा था कि तभी आपके दर्शन हो गए।" "आपको इतनी रात को डर नहीं लगता?" लड़की ने शक भरी निगाहों से सुरेश की ओर देखते हुए पूछा। लड़की की बात को सुनकर सुरेश कुछ देर के लिए खामोश सा हो गया और फिर वह कुछ सोचते हुए बोला "अरे नहीं डर कैसा मेरा तो काम ही है रातों को घूमना ।"सुरेश ने हंसते हुए जवाब दिया। लड़की ने भी सुरेश की और देखा और मुस्कुराने लगी। सुरेश जानता था की उसने झूठ बोला है क्योंकि इतनी रात गए उसे डर तो लग रहा था। अचानक से उस लड़की ने सुरेश का हाथ पकड़ लिया। सुरेश ये देखकर हैरान रह गया। किसी अनजान जगह पर अनजान लड़की के द्वारा अनजान लड़के का अनजान से तरीके से हाथ पकड़ लेना हैरानी में तो डालता ही है। उस लड़की ने सुरेश को अपने साथ आने के लिए कहा । वो लड़की सुरेश का हाथ पकड़कर आगे आगे चल रही थी और वो चुपचाप उसके पीछे चल रहा था मानो की वो उसका एक दास हो। उस लड़की का हाथ इतना कोमल और मुलायम था की सुरेश को लगने लगा की वो हाथ अभी पिघल जायेगा। सुरेश ने पहली बार अपनी जिंदगी में इतनी खूबसूरत लड़की देखी थी। वे दोनो कुछ भयानक सी कब्रों को पार करते हुए एक चौकोर आकार के पत्थर पर जाकर बैठ गए। उस पत्थर को देखकर भी ये लग रहा था की वो भी उन दोनो का ही इंतजार कर रहा था। सुरेश ने उस पत्थर पर बैठते हुए चारों और नज़र दौड़ाई। इस खामोश से कब्रिस्तान में उन दोनों के अलावा और कोई भी दूर दूर तक नज़र नही आ रहा था। सुरेश ने धीरे से बोलते हुए कहा ताकि उसकी आवाज को सिर्फ वो लड़की ही सुन सके और कोई भी नही "जी आपने अपना नाम नही बताया और इतनी रात गए आप इस कब्रिस्तान में क्या कर रही थी?" सुरेश ने कुछ आश्चर्य सा व्यक्त करते हुए कहा। ये सुनते ही उस लड़की ने सुरेश के चेहरे की और देखा और कुछ सोचने लगी । वो कुछ देर के लिए खामोश रही और फिर धीरे से मीठी सी आवाज में बोल पड़ी" जी मेरा नाम मोनिका है,मेरे पिता इस कब्रिस्तान में एक चौकीदार है, मैं उनके साथ में यंही रहती हूं। अब तो ये कब्रिस्तान ही हमारा घर है।" लड़की कुछ मायूस होकर बोली। लड़की की बातें सुनकर सुरेश थोड़ा सा डर गया और फिर वे दोनो ही कुछ देर के लिए खामोश रहे। सुरेश ने कुछ सोचते हुए अपनी चुप्पी तोडी और फिर से बोल पड़ा " जी आपको इस कब्रिस्तान में डर नही लगता?" ये सुनकर वह लड़की एक अजीब से तरीके से मुस्कुराई और फिर कुछ सोचते हुए बोल पड़ी " अब मुझे जहा पर रहने की आदत हो गई है, इसलिए अब डर नही लगता, हां पर शुरुआत में जरूर लगता था।" इसके बाद फिर से वे दोनो कुछ देर के लिए चुप रहे। कुछ सोचते हुए वह लड़की फिर से बोल पड़ी "हां मगर अब मैं इस कब्रिस्तान से तंग आ चुकी हूं।जहा पर कोई भी मेरे साथ बाते करने के लिए नही आता है। अब मुझे जहा पर रहते हुए अकेलापन महसूस होने लग गया है। यह कहकर वह लड़की निराश हो गई। सुरेश से लड़की की ये निराशा देखी न गई और वह बोल पड़ा "अब मैं हूं ना तुम्हारे साथ बाते करनें के लिए, अब मैं रोज तुम्हारे पास आया करूंगा।" यह कहकर सुरेश कुछ देर के लिए खामोश हो गया और वह मन में सोचने लगा की उसे लड़की को ऐसा नही कहना चाहिए था। उसे हद पार नहीं करनी चाहिए। लड़की ने भी शकभरी निगाहों से सुरेश की और देखते हुए पूछा "तुम रोज तो आओगे ना।" "हां हां क्यों नहीं मैं रोज आऊंगा तुमसे बाते करने के लिए।" ये कहते हुए सुरेश ने एक ठंडी सी आह भरी और कुछ देर के लिए खामोश हो गया। वे दोनो इसी तरह आधी रात तक बाते करते रहे। सुरेश को किसी चीज का कोई होश नही था। वो तो बस उस लड़की की बातों में खोया हुआ था। सुरेश का मन तो उस लड़की के पास से हिलने का बिलकुल भी नहीं कर रहा था। वह तो चाहता था की वो पूरी उम्र उस लड़की के पास बैठे हुए गुजार दे। सारी उम्र वो उससे बस मीठी मीठी बातें करता रहे। पर नियति को यह शायद कहा मंजूर था। बातें करते करते उसने आसमान में चांद की और देखा और वो थोड़ा सा चिंतित हो उठा। उसे अचानक ही याद आया की उसके एक नानी भी है जिसके पास उसे रात होने से पहले ही लौटना था पर उसे अब बहुत देर हो चुकी थी। जो अब भी शायद उसी का इंतजार कर रही होगी। ये सोचते हुए वो अचानक ही उस लड़की के पास से उठ खड़ा हुआ। लड़की से बाते करते हुए उसे पता ही नहीं चला था की कब आधी रात हो गई थी। लड़की ने भी आश्चर्य से सुरेश की और देखते हुए पूछा "क्या हुआ? इस तरह खड़े क्यों हो गए?" सुरेश ने हड़बड़ाहट में लड़की के चेहरे की और देखते हुए कहा "मोनिका मुझे अब अपने घर जाना चाहिए। आधी रात हो चुकी है। मेरी नानी घर पर अकेली है वो मेरा इंतजार कर रही होगी।" लड़की भी सुरेश की और भावसून्यता से देखने लगी। वो भी सुरेश की परेशानी को अच्छे से समझ सकती थी । लड़की ने भी धीरे से हां में सिर हिला दिया। हालंकि सुरेश का मन तो नहीं कर रहा था की वो उस लड़की को इस तरह अकेला छोड़कर चला जाए पर वो कर भी तो क्या सकता था। वो भी वक्त के आगे मजबूर था। वो पीछे मुड़ा और अपने घर की और जाने ही लगा था की तभी उस लड़की ने फिर से वही सवाल पूछा" तुम कल वापिस तो आयोग ना?" सुरेश उस लड़की की और घुमा और कुछ देर के लिए अपनी सोच में घूम सा हो गया और फिर मुस्कुराते हुए बोला "मुझे भी नही मालूम ,उम्मीद तो है।" ये सुनते ही वो लड़की भी थोड़ा सा मुस्कुरा पड़ी। मनोज वापिस पीछे मुड़ा और तेजी से चलने लगा। वो धीरे धीरे कब्रो को पार करने लगा। वो धीरे धीरे चलते हुए कब्रिस्तान के दरवाजे तक पहुंचा और कब्रिस्तान से बाहर निकल गया। कब्रिस्तान से बाहर निकलते ही वो फिर से पीछे मुड़ा और उस पत्थर की और देखा वो लड़की अब भी चुपचाप उस पत्थर पर बैठी थी और सुरेश की तरफ ही घूरे जा रही थी। सुरेश जैसे ही चलने के लिए आगे मुड़ा तभी उसे सामने से एक काली परछाई अपनी और आते हुए नजर आई। ये देखकर वो बुरी तरह डर गया। उसका शरीर सुन हो गया मानो की उसे लकवा ही मार गया हो। वो हिल भी नहीं पा रहा था। पर अगले ही पल उसने कुछ शांति की सांस ली क्योंकि वह तो सिर्फ एक बूढ़ा सा व्यक्ति था जो तेजी से उसकी और बढ़ रहा था। रात के अंधेरे में उसका चेहरा कुछ साफ नजर नहीं आ रहा था। सुरेश ने अनुमान लगाया शायद वह चौकीदार होगा। मोनिका का पिता। यह सोचते हुए उसने फिर से अपनी नजर कब्रिस्तान में दौड़ाई वो लड़की अब भी वही उसी पत्थर पर बैठी थी और उसी की और देखे जा रही थी। तभी वो बूढ़ा चौकीदार सुरेश के पास आकर खड़ा हो गया और आश्चर्य से उसकी और देखते हुए पूछा" बेटा तुम कोन हो और इतनी रात को इस कब्रिस्तान के पास क्या कर रहे हो? इतनी रात को तो यहा भूत भी आने से डरते हैं।" इतना कहकर वह बूढ़ा खांसने लगा। सुरेश कुछ देर रुका और फिर धीरे से बोल पड़ा" दादा मैं तो बस यूं ही घूमने निकला था। घूमते घूमते जंगल में काफी दूर निकल गया था । इसलिए वापिस लौटते वक्त काफी देर हो गई । बस जहा से गुजर रहा था की तभी वो लड़की.....।" इतना कहकर सुरेश कुछ देर के लिए चुप हो गया। लड़की का नाम सुनते ही वो चौकीदार सुरेश की और आंखे फाड़ फाड़कर देखने लगा और उसकी बात पूरी होने का इंतजार करने लगा। मगर सुरेश इस भयानक सी रात में कुछ देर के लिए खामोश सा होकर रह गया। कुछ देर रुकने के बाद कुछ सोचते हुई सुरेश चौकीदार के चेहरे की और देखते हुए गंभीरता से बोला " दादा मोनिका आपकी ही बेटी है ना?" मोनिका का नाम सुनते ही वो बूढ़ा चौकीदार थोड़ा सा मायूस हो गया और फिर सिसकी लेते हुए बोल पड़ा "है नही बेटा थी।" ये सुनते ही सुरेश के पैरों तले जमीन खिसक गई। इस ठंड की रात में भी वो पसीना पसीना होकर रह गया। उसने तेजी से कब्रिस्तान के अंदर उस पत्थर की और नजर दौड़ाई अब वो लड़की वहा पर नही थी। उसने चारो तरफ देखा वो लड़की उसे कही पर नजर नहीं आई। सुरेश के तो कुछ भी समझ में नही आ रहा था। उसके तो यह भी समझ में नही आ रहा था की ये सच है या सपना। उस ठंड की रात में वो कुछ देर के लिए एक बेजान सी लाश बनकर रह गया। तभी वो बूढ़ा चौकीदार रोने लगा और सुरेश के कंधे पर हाथ रखकर धीरे से बोला जिसकी आवाज सिर्फ और सिर्फ सुरेश ही सुन सके और कोई भी नही "बेटा मोनिका तो मुझे दो साल पहले ही छोड़कर चली गई थी। उसे लाइलाज बीमारी थी मेरे पास उसके इलाज के लिए आने नहीं थे। इलाज न हो पाने के कारण उसने दो साल पहले ही दम तोड दिया था। सुरेश ने फटी आंखों से चौकीदार की और देखा और हड़बड़ाहट में बोला "लेकिन में अभी मोनिका से मिला था वो यही थी। उसने मेरे साथ बातें की थी।" बूढ़े चौकीदार ने शकभरी निगाहों से सुरेश की और देखा फिर मुस्कुराकर धीरे से कहा" तुम्हे वहां हुआ होगा बेटा। अक्सर ऐसे वहम लोगों को जहा पर होते रहते हैं।" यह कहकर वह बूढ़ा चौकीदार तेजी से कब्रिस्तान के अंदर घुस गया। सुरेश कुछ देर के लिए उसी जगह सतब्द सा खड़ा रहा । सुरेश के तो कुछ भी समझ में नही आ रहा था जिससे वो मिला था फिर वो कोन थी कोई लड़की, कोई रूह ,या फिर कोई डायन। कई सवाल उसके दिमाग में तेजी से घूम रहे थे । उसने अपने आप पे काबू पाया और फिर धीरे धीरे अपने घर की और बढ़ने लगा। कुछ देर बाद वो घर पर जा पहुंचा। वो घर पर जाते ही सीधा अपने बिस्तर पर गया और जाकर औंधे मुंह लेट गया और कुछ यादों में गुम सा हो गया । उसे देखकर नानी की जान में भी जान आई। नानी ने सुरेश के पास जाकर पूछा" बेटा सुरेश कहा चल गए थे, तुम्हे मालूम है मुझे तुम्हारी कितनी फिक्र हो रही थी, आधी रात हो गई है तुम कहा रह गए थे। रास्ता भटक गए थे क्या। काफी थक गए लगते हो।" नानी ने कई सवाल एक साथ पूछ डाले। सुरेश अपने बिस्तर पर सुन सा हुआ पड़ा था। उसने कोई भी जवाब नही दिया। नानी से उसकी ये हालत देखकर रहा नही गया उसने फिर से पूछा "क्या हो गया बेटा तुम्हे।" सुरेश कुछ सोचते हुए बिस्तर पर बैठ गया और अपनी सारी आपबीती डरते हुए नानी को सुनाने लगा। सारी आपबीती सुनने के बाद वो बोल पड़ा"नानी वो चौकीदार तो कह रहा था कि उसकी बेटी दो साल पहले ही मर गई थी तो फिर मैं जिससे मिला था वो कोन थी । वो चौकीदार जरूर झूठ बोल रहा था। मेरी आंखें कभी धोका खा ही नही सकती ।" ये बात सुनते ही नानी की आंखे फटी की फटी रह गई। वो आश्चर्य से सुरेश की और देखते हुए कंपकंपाती हुई आवाज में बोली" बेटा उस कब्रिस्तान में कोई भी चौकीदार नही रहता। आज से दो साल पहले ही उसकी बेटी मर गई थी। बेटी की मौत का सदमा बर्दास्त न कर पाने के कारण उसने भी दो दिन बाद में दम तोड दिया था। अब वहा कोई भी चौकीदार नही रहता ना ही कोई लड़की रहती है। न जाने तुम किससे मिल आए हो।" नानी की ये बातें सुनते ही सुरेश के पैरों तले जमीन खिसक गई। वो एक ठंड का पुतला बनकर रह गया। उसे लगने लगा कि किसी ने तलवार से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया हो।।



✍️✍️भूपेंद्र सिंह रामगढ़िया।।

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