VIVEK KUMAR PANDEY 29 Jun 2023 कविताएँ दुःखद दुख, व्यथा, मृत्यु 11633 0 Hindi :: हिंदी
जलाओ न मेरे लिए तुम दिवाली, तुम्हारे लिए मैं जला न सकूँगा। बिछड़ जायेंगे हम अकेले - अकेले, न तुम साथ दोगे न मैं साथ दूँगा।। हृदय में मरण का है उल्लास कितना, तुम्हारी विरह में है क्या खास इतना। निष्कृति मेरी है ये विरह की अग्नि, बुझाना भी चाहूं बुझा न सकूंगा।। न तुम प्रीति पालो न मुझको बुलाओ, न तुम खुद ही रोओ न मुझको रुलाओ। है निर्जल नयन और रसिका भी सूखी, व्यथा अपनी तुमको बता न सकूँगा।। सुनो अब मेरी जिंदगी थम रही है, तुम्हारे बिना नब्ज़ भी जम रही है। ऐसे में कैसे बुलाऊं तुम्हे मै, न तुम आ सकोगे न मैं आ सकूंगा।। मेरे दुख के बादल छटेंगे कभी न, ये नयनों की वर्षा रुकेगी कभी न। ऐसे में प्रतिपल मुझे याद करके, न तुम रह सकोगे न मैं रह सकूंगा।। जलाओ न मेरे लिए तुम दीवाली, तुम्हारे लिए मैं जला न सकूंगा। बिछड़ जायेंगे हम अकेले - अकेले, न तुम साथ दोगे न मैं साथ दूंगा।।