Sanam kumari Shivani 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक 10491 0 Hindi :: हिंदी
आज फिर मेरे कंधो पर एक बड़ी जिम्मेदारी है आज फिर मां और ममता को, शब्दों में बाटने की बारी है। सोच रही हूं जिसने अक्षर 2 पढ़ना सिखाया मुझे उसके लिए कोन सी किताब लिखूं जिसने शब्द शब्द बोलना सिखाया उसके लिए क्या बोलूं कोन सा दिया जलाऊ उसके आगे जिसने मेरे इंतजार में आंखे जलाई हो क्या गाए उसके लिए जिसने मेरे लिए लोड़ीया गाई हो पूछ के देख मेरा रोम रोम एक अनकही कहानी कहेगा आज में नही कहूंगी जो कहेगा मेरे आंखो का पानी कहेगा में बहुत ताकत बर हूं और बहुत कमज़ोर,मां के साथ होती हूं तो मुझे बड़े बड़े बलाए से डर नही होता जब दूर होती हूं तो मुझे फोन की एक रिंग डरा देती हैं। काप उठती हूं ये सोचकर जो सबसे कीमती है वो कही खो तो नही गया कही मां को कुछ हो तो नही गया ऐसा थोड़े हैं मां ने सब किया पापा भी कम नहीं हैं मैंने जो मांगा सब लाके दिए हैं पापा की गलती थोड़े हे इनके सिने में दिल धड़कता तो मां के सीने में आकाश पापा का दोष मत दो जनाब उनके बस में होता तो ज़मी के तमाम जड़े आसमा बन चुके होते ,मां बनना इतना आसान होता तो पापा मां बन चुके होते में कभी राशिफल नहीं पढ़ती कभी हाथ की रेखाएं नही दिखाती ऐसा नहीं है मुझे आने वाले कल की फिकर नही है किसी अनहोनी का डर नही है पर मुझे पता है मेरी जिंदगी हाथ की रेखाएं में नही है मां के पलको में बंद है उनकी चमकती आंखे बता देती है, मेरी तकदीर बुलंद हैं मां अगर कुछ छुपा दे तो हम कहीं ढूंढ नही पाते है मेरी मां ने भी कहीं हम से छुपा के रख दिए है वो दर्द नही मिला जो किसी तहखाने में दवा के रख दिए एक एक अलमारी झांकी कही वो सपने नही मिले जो हमे जोड़ने में टूट गए बिस्तर के एक एक तह खोल दी पर वो आंसु नहीं मिले जो किसी तकिए के गिलाफी में सुख गाए मां मेरे बाद तूने अपने लिए कब कुछ मांगा था कोन सी पेड़ में मन्नत का धागा बांधा था कोन सी नदी में सिक्का फेका था कोन सी गुरुद्वारे में मत्था टेका था मां तूने भी तो एक ही जिंदगी पाई थी एक बार तो जीने का स्वाद चख लेती सब कुछ हमे दे दी मां कुछ अपने लिए तो रख लेती