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बिना जुल्म के ही

Rupesh Singh Lostom 14 May 2023 शायरी दुःखद बिना जुल्म के ही 7520 0 Hindi :: हिंदी

बिना जुल्म के ही 
जुल्म सहे जा रहा हूँ 
उसकी ना इंसाफ़ी का जहर 
यु ही पीए जा रहा हूँ 
अब तो हद हो गई हद की 
मालूम नहीं क्यों यु ही 
जिए जा रहा हूँ 
वो समझेगा एक दिन 
मेरी जज्बातों को 
बस इसी उम्मीद में 
जख्म सीए जा रहा हूँ 
बो नादान हैं पर समझता सब हैं 
मैं इसी को सच माने जिए जा रहा हूँ 
हर रोज धुआँ बनके गगन तक फैलता हैं 
उनके इस सितम को भी सहे जा रहा हूँ

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