DINESH KUMAR KEER 08 May 2023 कहानियाँ समाजिक 6873 0 Hindi :: हिंदी
*शिक्षक की महिमा* *मत पूछिए कि शिक्षक कौन है?* *आपके प्रश्न का सटीक उत्तर* *आपका मौन है।* *शिक्षक न पद है, न पेशा है,* *न व्यवसाय है ।* *ना ही गृहस्थी चलाने वाली* *कोई आय हैं।।* *शिक्षक सभी धर्मों से ऊंचा धर्म है।* *गीता में उपदेशित* *"मा फलेषु "वाला कर्म है ।।* *शिक्षक एक प्रवाह है ।* *मंज़िल नहीं राह है ।।* *शिक्षक पवित्र है।* *महक फैलाने वाला इत्र है* *शिक्षक स्वयं जिज्ञासा है ।* *खुद कुआं है पर प्यासा है ।।* *वह डालता है चांद सितारों ,* *तक को तुम्हारी झोली में।* *वह बोलता है बिल्कुल,* *तुम्हारी बोली में।।* *वह कभी मित्र,* *कभी मां तो ,* *कभी पिता का हाथ है ।* *साथ ना रहते हुए भी,* *ताउम्र का साथ है।।* *वह नायक ,खलनायक ,* *तो कभी विदूषक बन जाता है ।* *तुम्हारे लिए न जाने,* *कितने मुखौटे लगाता है।।* *इतने मुखौटों के बाद भी,* *वह समभाव है ।* *क्योंकि यही तो उसका,* *सहज स्वभाव है ।।* *शिक्षक कबीर के गोविंद सा,* *बहुत ऊंचा है ।* *कहो भला कौन,* *उस तक पहुंचा है ।।* *वह न वृक्ष है ,* *न पत्तियां है,* *न फल है।* *वह केवल खाद है।* *वह खाद बनकर,* *हजारों को पनपाता है।* *और खुद मिट कर,* *उन सब में लहराता है।।* *शिक्षक एक विचार है।* *दर्पण है , संस्कार है ।।* *शिक्षक न दीपक है,* *न बाती है,* *न रोशनी है।* *वह स्निग्ध तेल है।* *क्योंकि उसी पर,* *दीपक का सारा खेल है।।* *शिक्षक तुम हो, तुम्हारे भीतर की* *प्रत्येक अभिव्यक्ति है।* *कैसे कह सकते हो,* *कि वह केवल एक व्यक्ति है।।* *शिक्षक चाणक्य, सान्दिपनी* *तो कभी विश्वामित्र है ।* *गुरु और शिष्य की* *प्रवाही परंपरा का चित्र है।।* *शिक्षक भाषा का मर्म है ।* *अपने शिष्यों के लिए धर्म है ।।* *साक्षी और साक्ष्य है ।* *चिर अन्वेषित लक्ष्य है ।।* *शिक्षक अनुभूत सत्य है।* *स्वयं एक तथ्य है।।* *शिक्षक ऊसर को* *उर्वरा करने की हिम्मत है।* *स्व की आहुतियों के द्वारा ,* *पर के विकास की कीमत है।।* *वह इंद्रधनुष है ,* *जिसमें सभी रंग है।* *कभी सागर है,* *कभी तरंग है।।* *वह रोज़ छोटे - छोटे* *सपनों से मिलता है ।* *मानो उनके बहाने* *स्वयं खिलता है !* *वह राष्ट्रपति होकर भी,* *पहले शिक्षक होने का गौरव है।* *वह पुष्प का बाह्य सौंदर्य नहीं ,* *कभी न मिटने वाली सौरभ है।* *बदलते परिवेश की आंधियों में ,* *अपनी उड़ान को* *जिंदा रखने वाली पतंग है।* *अनगढ़ और बिखरे* *विचारों के दौर में,* *मात्राओं के दायरे में बद्ध,* *भावों को अभिव्यक्त* *करने वाला छंद है। ।* *हां अगर ढूंढोगे ,तो उसमें* *सैकड़ों कमियां नजर आएंगी।* *तुम्हारे आसपास जैसी ही* *कोई सूरत नजर आएगी ।।* *लेकिन यकीन मानो जब वह,* *अपनी भूमिका में होता है।* *तब जमीन का होकर भी,* *वह आसमान सा होता है।।* *अगर चाहते हो उसे जानना ।* *ठीक - ठीक पहचानना ।।* *तो सारे पूर्वाग्रहों को ,* *मिट्टी में गाड़ दो।* *अपनी आस्तीन पे लगी ,* *अहम् की रेत झाड़ दो।।* *फाड़ दो वे पन्ने जिन में,* *बेतुकी शिकायतें हैं।* *उखाड़ दो वे जड़े ,* *जिनमें छुपे निजी फायदे हैं।।* *फिर वह धीरे-धीरे स्वतः* *समझ आने लगेगा* *अपने सत्य स्वरूप के साथ,* *तुम में समाने लगेगा।।* एक आदर्श शिक्षक के कार्य व जीवन में अनेक प्रकार के उतार चढ़ाव आते है, आदर्श शिक्षक कभी भी बाधाओं से नहीं घबराता है... लेखक: - दिनेश कुमार कीर