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बदलते गांव

Yogesh Yadav 30 Mar 2023 कविताएँ अन्य 82117 0 Hindi :: हिंदी

बड़ों के आगे बच्चों का सीना तनते देख रहा हूँ 
अपने इस गाँव को मैं शहर बनते देख रहा हूँ
देख रहा हूँ रोग बड़ा ये जवानी हो गया है 
रगों में बहता खून भी अब पानी हो गया है
लोकलाज और शर्म है बातें पुरानी सी ये 
सबसे बड़ा मुद्दा लाभ और हानी हो गया हैं।
गाँव की लड़की लगती अब बहन नहीं 
नजर-सोच दोनों ही अब गंदी हो गई है
रिश्ते भी भार सा लगने लगे हैं लोगों को 
परिवारों में संघबद्धता भी मंदी हो गई है।
अब पहले वाले कोई रीति-रिवाज ना रहे 
खेती-बाड़ी, पशुपालन काम-काज ना रहे
एक-दूसरे के पैर खींचने में व्यस्त हैं सभी 
बात कामयाबी की करूं तो पस्त हैं सभी
बाप की पगड़ी बेटी के पैरों में पड़ते देख रहा हूँ 
अपने इस गाँव को मैं शहर बनते देख रहा हूँ

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