Amit Kumar prasad 30 Mar 2023 कविताएँ देश-प्रेम This poem is a motivational poem and lot of love with mother heritage. And I hope that every reader as before love of this with Soil love. Jai Hind. 16912 0 Hindi :: हिंदी
है विजय धरा कि नाज़ कलम, हर कमजोरों कि आवाज़ कलम! कलम दिप्त अरूणाचल पे, नभ पे उज्जवल धरातल से!! समय कि गाथा को लीख - लीख कर, भारत को समय अर्पित करता! ये समय को लाता है चल - चल कर, भारत का समय स्वर्णिम करता!! हा ये भी सत्य है वशुधा पर, समय के रहने वालों से! सत्य - असत्य बन जाती है , कुछ कागज़ पे बिके गवाहों से!! पर सत्य कि विस्मित नीव जड़ी, समय के अविचल धारों पे! कलम चले संघर्ष कि पात - पात, साध्य दिखें ईतीहासों मे!! है सत्य - असत्य कि नीव धरा पर, जहा नायक है खलनायक भी! जो ईश्वर मान्य वशुधा संरक्क्षण, तो भय है नही शैतानों की!! कितने भी खरिदें बल वक्तों को, समय न्यान का करता है! जब समय न्याय करने पर उतरे, गव़ाह नही उन्हें लगता हैं!! समय - समय कि बात है प्यारे, कभी जीत मिले कभी हार मिली! हर हार - हार कर प्रस्त हूआ, जब समय न्याय के धार चली!! चलतें चलतें ग्रहणिय कांटें, क्षण कांटें को अग्रीण कर जाता है! मन्द - मन्द गती क्षण कि अचल, घण्टों मे विस्मित हो जाता है!! चलते - चलते कुछ बोल चली, कवी विचार मग्न हो ध्यान करें! समय साथ चली अमर कलम, समय शुधा का पान करे!! कर रहा है सेवन ज्ञान धरा, समय कलम का सबल गहन! है धरा नमन कलम लेख से, लेखक का समय को कोटी नमन हर कोलाहल के दृष्टी से परे, अमन, संघर्ष समय पर फलता है! जब वक्त न्यान के पथ उतरे, आवाज़ भी सुना पड़ता है!! समय धरा पर थके नही, कलम अज़र गृहणी है!! है इस वशुधा का अमर समाहर, समय महा आर्दनिय है!! कुछ पंथ लीख रहा लेखक के मान पर, आशा भारत से करके आश! पाठक मन का इसे प्यार मिले, और भारत कि धरा पर फुले विकाश!! है बिते नय्न उद्धरणों पे, भारत के संघर्ष के चरणों मे, सह बल, छल, स्वर का कटाछ वाण, चलता है कलम हर वर्णों में!! ये जाती - पाती न भेद रखें, समय के रंग ढल जाता है! जो वशुधा के हित कलम का नाज़ धरे, वो लेखक कहलाता है!! सह कष्ट - द्वन्द समय के धार, कलम चली अग्निपथ पर! पथ - पथ को देती अमर शुद्धा! संघर्ष धरा के अन्तस्तल पर!! जो चले हृदय विस्मित होकर, तो कर्म अडीग बन जाता है! लत - पत, लत - पत संघर्षों से रहे, जो वो लेखक कहलाता है!! है मिली धरा को मान प्रबल, हम लेख लीखें पाषाणों पे! भारत के भविष्य का वक्त फले, नमन करके लेख अहवानों से!! कलम नाज़ करती चलती, समय का करता साज़ कलम! है विजय धरा कि नाज़ कलम, हर कमज़ोरों कि आवाज़ कलम!! हर विपदा से धरा को बढ़ - बढ़ उभार, समय ने साज - श्रृंगार किया! कभी समय कलम को वारा है, कभी कलम समय को वार दिया!! है वक्त का वक्त को अचल नमन, कलम कि नर्म उधियाचल से! और कलम दिप्त अरूणाचल पे, नभ पे उज्जवल धरातल से!! कवी :- अमित कुमार प्रशाद Poet :- Amit Kumar Prasad
My Self Amit Kumar Prasad S/O - Kishor Prasad D/O/B - 10-01-1996 Education - Madhyamik, H. S, B. ...