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रात बसंती चादर ओढ़े-तारों के संग झिलमिल करती

Sudha Chaudhary 08 Sep 2023 गीत अन्य 16146 0 Hindi :: हिंदी

रात बसंती चादर ओढ़े
तारों के संग झिलमिल करती
मैं बैठी यादों में तेरी
रातों को पहरे देती।
चुनकर मैने दीप जलाए
तुम भूले लौट ना आए
देख नगर है कितना सूना
दिन भी जैसे लगे महीना
बोल नहीं फूटे हैं मुख से
आंखें बस कह देती।

मैं बैठी यादों में तेरी
रातों को पहरे देती।

मैं रोई ऐसे पल-पल में
बरसों बीत गए तिल तिल में
बरखा बीती , माघ भी बीता
फिर भी मन का द्वार न टूटा
तू पाषाण बड़ा है प्रियतम
जीने की अनुकंपा ले ली
सारी दुनिया सुख में झूमे
मैं सुख की बस आश ही करती।

सुधा चौधरी
बस्ती

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