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बच्चें के संस्कार

Chanchal chauhan 27 Dec 2023 कहानियाँ धार्मिक चार प्यासे महात्मा 18906 0 Hindi :: हिंदी

एक गांव में चार महात्मा घूमने आते हैं।वह भिक्षा मांग रहे थे। गर्मी के दिन थे।भीख मांगते दोपहर हो गया ।एक नीम का पेड़ था।वह उसके नीचे बैठ गये।छाया तो मिल गई उन्हें प्यास लग रही थी।
 थोड़ी देर बाद एक आदमी घर से निकलकर आता हैं।वे महात्मा उसके कहते हैं,"भाई हमें प्यास लगी है ,थोड़ा पानी पिला दो।" वह आदमी कहता है," अभी मैं जल्दी में हूं। मुझे बहुत जरूरी काम है, मैं आकर पिलाता हूं। मुझे बस दस मिनट लगेंगे।" 

वह आदमी इतना कहकर चला जाता हैं। महात्मा को बहुत प्यास लग रही थी।दो महात्मा वहां से उठकर एक घर के दरवाजे पर जाते हैं। दरवाजा बंद होता हैं।वह उस दरवाजे को खटखटाते हैं।उस घर में से एक औरत निकलकर आती हैं।

वह उस औरत से कहते हैं," बहन हमें प्यास लगी है। थोड़ा पानी पिला दोगी क्या?" वह औरत कहती हैं,"अभी लाती हूं।" वे महात्मा दरवाजे पर ही खड़े हो जाते हैं।उस औरत को दस मिनट हो जाती हैं।वह बाहर नहीं आती। महात्मा उसका दरवाजे पर ही इंतजार करते हैं।

बीस मिनट हो जाते हैं, वह फिर भी नहीं आती । फिर वह आवाज लगाते हैं।बहन आप आई नहीं हम दरवाजे पर खड़े हैं।वह औरत सो जाती हैं वह हल्की नींद में होती हैं।अभी आ रही हूं थोड़ी देर में, महात्मा समझ जाते हैं,ये अब नहीं आयेगी, ये सो गई हैं।

वे दोनों महात्मा पेड़ के नीचे आकर बैठ जाते हैं।दूसरे महात्मा कहते हैं,"पानी नहीं लाये ।"
वे दोनों महात्मा कहते हैं,"एक औरत घर से निकलकर आई थी, कह रही थी अभी ला रही हूं पानी, बीस मिनट हो गई दरवाजे पर खड़े हुए।वो नहीं आई आवाज लगाई तो वह तो जाकर सो गई ,नींद में बोल रही थी ,अभी आ रही हूं।

हम तो वहां से आ गये । उसे नींद प्यारी लग रही थी।प्यासे को पानी पिलाना जरूरी नहीं समझा।एक को काम प्यारा लग रहा था।कैसे लोग हैं दुनिया में इंसानियत नाम की कोई चीज नहीं।बस अब एक घण्टे में निकलते हैं, थोड़ी धूप कम हो जायेगी।

प्यास के मारे चला भी नहीं जा रहा हैं अब और के घर जाते दोपहर हो रहा हैं दरवाजे बंद हैं ,अगर गये उन्होंने भी नहीं दिया पानी तो और निराशा मिलेगी। महात्माओं का अब लोग   सम्मान नहीं करते।पहले तो कुछ ओर जमाना था। महात्माओ की लोग कितनी सेवा करते थे।
अब तो पानी भी भारी पड़ रहा हैं।

 गांव के बाहर सरकारी नल हैं, वहां पानी पी लेंगे।धूप में चला भी तो नहीं जा रहा हैं।" दूसरे महात्मा कहते हैं ,"ठीक हैं इतने आराम करते हैं।"  महात्मा को बहुत तेज प्यास लग रही थी।वे सहन कर रहे थे। क्योंकि उसके अलावा कोई चारा नहीं था। 

थोड़ी देर बाद एक घर में से एक बच्चा निकलकर आता हैं।वह उस पेड़ के नीचे आता हैं, जहां महात्मा बैठे थे ।वह एक लौटे में पानी भी लिये रहता हैं।पांच साल का छोटा बच्चें को सब आश्चर्य से देखते हैं।ये लोटा हाथ में कैसा यह बच्चा दोपहर में कैसे।

वह उस पेड़ की जड़ से एक सराई निकालता है।और उसमें पानी डाल देता हैं।वे सब महात्मा देख रहे थे। फिर वो बच्चा चिड़िया की बच्चों को बुलाता हैं।वे बच्चें आते हैं पानी पीते हैं। महात्मा जी के चेहरे पर मुस्कान होती हैं।उस बच्चें के कर्म देखकर इतना छोटा है, धर्म कमा रहा हैं।

उस लोटे में पानी बच जाता हैं।वह बच्चा उन महात्मा से कहता हैं," मेरी सबको राम राम।आपको भी प्यास लगी होगी ये थोड़ा सा पानी हैं लोटे में पी लीजिए। मैं घर से और पानी लाता हूं।"इतना कहकर बच्चा घर चला जाता हैं।

वह फिर एक जग में पानी लाता हैं। उन महात्मा को देता हैं। महात्माओ जी पानी पी लीजिए। महात्माओं का हृदय प्रेम से भर जाता हैं।उनके मन में खुशी छा जाती हैं।वे पानी पी लेते हैं।उस बच्चें के सिर पर हाथ फेरते हैं।उसे लम्बी उम्र का आशीर्वाद देते हैं। हमेशा खुश रहे बहुत आगे बड़े सब आशिर्वाद देते हैं।

वे महात्मा कहते हैं,"बच्चें तुम्हें कैसे पता हमें प्यास लगी है?"  बच्चा कहता है,"मैं सो रहा था ,मेरी आंखें खुली मुझे प्यास लगी ,मुझे प्यास लगी तो मेरे चिड़िया के बच्चें को भी प्यास लगी होगी।आपको भी तो प्यास लगी होगी सबको प्यास लगती हैं।

मेरी मां कहती हैं, गर्मी में पानी पीते रहना चाहिए ,बार बार प्यास लगती है।मेरे मां पिता कहते हैं जो भी घर पर आये उसे पानी पिलाना चाहिए।भोजन कराना चाहिए।आप मेरे घर चलो मैं आपको खाना खिलाऊंगा।आपको भूख भी लगी होगी।" 
वे महात्मा कहते हैं," हम तुम्हारे घर थोड़ी हैं।" वह बच्चा कहता है,"यह हमारा ही पेड़ हैं ,ये मेरे चिड़िया के बच्चों का घर हैं, वे इसी पेड़ पर रहते हैं ये मेरा फ़र्ज़ हैं।उनके घर पर जो भी आये मैं उनको पानी, भोजन खिलाऊ।"

बच्चें की बातें सुनकर महात्मा जी गदगद हो गये।वे उस बच्चें से कहते हैं ,"बेटे हम तुम्हारे माता पिता से मिलना चाहते हैं।"  बच्चा कहता है,"चलो मैं आपको लेकर चलता हूं आपको भोजन भी कराना हैं।"वे महात्मा बच्चें के घर जाने लगते हैं, वे दरवाजे पर ही रुक जाते हैं। 

बच्चें से कहते,"बेटा अपने माता-पिता को बुलाकर लाओ हम यहीं खड़े हैं। बच्चा जाता हैं अपने माता-पिता से सब बात बताता हैं।उसके माता-पिता बाहर दरवाजे पर आते हैं,बहुत खुशी के साथ उन्हें अंदर लाते हैं।उनका हाव भाव से स्वागत करते हैं।उनका बहुत सत्कार करते हैं। 

महात्मा जी को चौकी पर बिठाते हैं। महात्मा जी कहते हैं,"आपने अपने बेटे को बहुत अच्छे संस्कार दिये हैं।आपके खुद भी बहुत अच्छे संस्कार हैं।आपका बच्चा बहुत आगे जायेगा ।वे बच्चें की सारी बात बताते हैं। उसकी बहुत प्रसंशा करते हैं।

वे महात्मा को भोजन कराते हैं। महात्मा उनको आशिर्वाद देकर निकल जाते हैं।वे कहते हैं,"हम तो सोच रहे थे ,इस गांव के लोग सब ऐसे हैं।इनसे मिलकर लगा आज भी बहुत अच्छे लोग हैं।आज के इतने छोटे बालक में इतने संस्कार इतना दयावान कहीं नहीं देखा।

 इतना ज्ञान रखने वाला।धन्य हैं ये भगवान इनको बनाया।ऐसे ही इंसान की जरूरत हैं धरती पर ऐसे नहीं जो अपने काम , आराम के लिए किसी प्यासे को पानी भी ना पिला सके।पानी पिलाने का सबसे बड़ा धर्म होता हैं।

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