भूपेंद्र सिंह 28 Dec 2023 कहानियाँ प्यार-महोब्बत मंजुलिका और अजीत सिंह की प्रेम गाथा 9132 0 Hindi :: हिंदी
उपन्यास राजकुमारी मंजुलिका भाग - 2 गुप्त तहखाना शाम का वक्त होने को आ गया है। फिरोजगढ़ रियासत के महल के चारों और बहुत से सिपाही चौकने होकर चक्र काट रहे है। महल के चारों और इतना सख्त पहरा है की कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकता। महल की सबसे निचली इमारत के एक खुफिया से कोने में खूब अंधेरा छाया रहता है। बिना मसाल जलाए तो वहां पर कुछ भी साफ नज़र नहीं आता है। नीचे फर्श पर एक हरे रंग की मेट बिछाई हुई है। उस मेट के नीचे एक खुफिया दरवाजा है । वो खुफिया दरवाजा महल निचले भाग में बने हुए एक गुप्त तहखाने में जाता है जिसके बारे में खुद महाराज अभय सिंह को भी खबर नहीं है। इस गुप्त तहखाने से बाहर निकलने के दो रास्ते है। एक रास्ता महल के अंदर मेट के नीचे है जिसका जिक्र किया या चुका है और दूसरा रास्ता गुप्त तहखाने के अंदर ही एक दरवाजे के पीछे है। उस दरवाजे को खोलने के बाद एक लंबी सुरंग चालू हो जाती है जो की एक सुनसान से जंगल में एक भूतिया हवेली के अंदर जाकर खुलती है। फिलहाल इस गुप्त तहखाने का हाल सुने। तहखाने में एक अजीब सा जानलेवा सन्नाटा छाया हुआ है। एक और दो मसाले जल रही है जिसके कारण कुछ कुछ धुंधला सा नज़र आ रहा है। एक गबरू जवान , हटा कट्टा लड़का उस गुप्त तहखाने में इधर उधर चक्र काटे जा रहा है। देखने से ऐसे लग रहा है की वो कोई गहरी सोच में डूबा हुआ है। उसके पास दो आदमी और खड़े है जो लगातार उसी की और घूरे जा रहे हैं। अंधेरे में किसी का भी चेहरा सपष्ट नज़र नहीं आ रहा है। जो व्यक्ति टहल रहा है वो सोनगढ़ के सुल्तान जगजीत सिंह का लड़का विनोद सिंह है जिसने हाल ही मैं फिरोजगढ़ के महाराज अभय सिंह के कान भर कर उनके सलाहकार का पद संभाला है और अपने पिता जगजीत सिंह से ढेर सारी शाबासी ग्रहन की है । उसके पास जो दो आदमी खड़े है वो दोनों विनोद सिंह के आदमी है जिन्हे आज कोई नया काम सौंप कर विनोद सिंह ने चैन की सांस लेनी है। एक आदमी का नाम सलीम है तो दूसरे का परवेज खां है। दोनो सबसे बढ़कर जासूस है। विनोद सिंह हटा कट्टा , सांवले से रंग का 23-24 वर्षीय एक नौजवान लौंडा है। वो अपनी सोच से बाहर निकल जाता है और उन दोनो के सामने जाकर खड़ा हो जाता है। वे तीनों आपस में कुछ बातचीत करने लगते है । उनकी आवाज उस भयानक से तहखाने में गूंजने लगती है। विनोद सिंह - " राजकुमारी मंजुलिका सिर्फ मेरी है सिर्फ और सिर्फ मेरी। मेरे होते हुए वो और किसी की भी नहीं हो सकती। मंजुलिका को पाने के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूं। अगर मुझे उस अप्सरा को पाने के लिए अगर उसके बाप अभय सिंह को मारना भी पड़ा तो मुझे ये सौदा भी मंजूर है । लेकिन फिलहाल मैं उनका सलाहकार हूं इसलिए ऐसा कुछ भी करना हाल ही के लिए मुनासिब नहीं। और वैसे भी मैं जोर जबरदस्ती मंजुलिका को अपना नही बनाना चाहता । " सलीम - " तो हुजूर फिर आप क्या चाहते है ?" विनोद सिंह - " हम चाहते है की वो अप्सरा खुद हमारे लिए पागल हो जाए। मुझसे इश्क करने लगे। लेकिन वो है की मेरी और आंख उठाकर भी नही देखती।" परवेज खां - " हुजूर देखेगी कैसे , राजकुमारी जी तो विजयगढ़ के राजकुमार अजीत सिंह पर दिलों जान से आशिक हुई फिरती है।" विनोद सिंह - " ( गुस्से से ) ये बात हम जानते है लेकिन हम चाहकर भी कुछ नहीं कर सकते। हमे सबसे पहले तो उस लौंडे अजीत सिंह को किसी गड़े में डाल दफनाना होगा और ऐसा दफनाना होगा की सात जन्मों तक उसका पता किसी को न चले और फिर मैं उस अप्सरा से शादी करूंगा।" सलीम - " लेकिन हुजूर आप ये सब करेंगे कैसे?" विनोद सिंह - " आप नही हम तीनो मिलकर ये सब करेंगे और वैसे भी आज हमने मंजुलिका के खत लेकर जाने वाले उस कबूतर की गर्दन काट दी है लेकिन अफसोस वो लौंडा दयाल सिंह वहां से नौ दो ग्यारह हो गया। मुझे लानत है तुम दोनो पर, तुम दोनो मिलकर भी उस एक लौंडे को नहीं पकड़ सके।" परवेज खां - " हुजूर क्या बताएं, हमने तो पूरी कोशिश की थी मगर उस दयाल सिंह ने ऐसा घोड़ा दौड़ाया की तूफान की तरह आंखों से ओझल हो गया। लेकिन हुजूर आप यकीन मानिए वो दयाल सिंह अब वापिस यहां आने की जुर्रत भी नहीं करेगा?" विनोद सिंह - " नहीं परवेज , वो अजीत सिंह बहुत तेज खोपड़ी है वो चुपचाप बैठने वाला नहीं है । उसके दिमाग में जरूर कोई न कोई खिचड़ी तो पक रही होगी। और अब से तुम दोनों को मेरी अप्सरा पर चौबीसों घंटे निगाह रखनी है। वो कब उठती है, कब सोती है , कब खाना खाती है, हर एक एक पल की खबर मुझे चाहिए , हर एक एक पल की । समझ गए ना तुम दोनों? सलीम - " जी हुजूर, आप फिक्र मत कीजिए। अब हम दोनों राजकुमारी पर हर एक पल नज़र रखेंगे और आपको शिकायत का कोई भी मौका नहीं देंगे।" विनोद सिंह - " ठीक है । अब तुम दोनो जाओ। और तब तक हम उस लौंडे अजीत सिंह को ठिकाने लगाने की कोई तरकीब सोचते है।" इतना सुन वे दोनों वहा से सीढ़ियों की और जाने लगते हैं और ऊपर के दरवाजे से बाहर निकल कर महल में चले जाते है। विनोद सिंह वहीं पर कुछ सोचते हुए टहलने लगता है।।