कवि सुनील नायक 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक नशा मुक्ति पर राजस्थानी कविता 98261 0 Hindi :: हिंदी
मत पियो मोटियारा थे दारू। थारी बोली नी थारे सारू।। मत जाओ थे दारू र नैङा। ईनै नी पिवै गधैङा।। मत घाल तुं मुंडे माही जर्दो। थुख - थूख थें सगळै घर नै भरदौ।। सिगरेट सिळगार मत काढौ थें धुऔ। ई सूं थांरी ज़िन्दगी रौ निकळ जावैला धूंऔ। घौळ -घौळ मत पी तूं डौडा। एक दिन जवाब दैदैसी थारा गौडा।। मत पियो मोटीयारा थे बीड़ी। थारी सगळी मांदी हौ जावैला पीङी।। मत लै बैठ तूं हाथ माही हौकौ। ई रुपाळी काया रौ बण जावैला खौखो।। थां सूं इतरी सी है अरज म्हारी। मत मौल लैवौ थै आ बीमारी।। सगळौ डील थारौ धूजण लागियौ। जद सूं तूं दारू पीवण लागियौ।। कैई मण तूं आ गन्दगी खागियौ। जिणरौ नाव गुटखौ लखायौ।। जवानी माही बूढापौ निगै आवै। अॆ तम्बाकू रा लखण लखावै।। दारु पी'अर तूं पङियौ रैवै गळिया रै माही। कुत्ता मूतै थारै मूंडै माही।। - कवि सुनील कुमार नायक