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महिलाओं की स्तिथि-सुधार आंदोलन और सहकारी प्रयत्नों के फलस्वरूप

संदीप कुमार सिंह 09 May 2023 आलेख समाजिक मेरा यह आलेख समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 5847 0 Hindi :: हिंदी

सुधार आंदोलन और सहकारी प्रयत्नों के फलस्वरूप महिलाओं की स्तिथि में अनेक परिवर्तन और सुधार हुए हैं। पर इस संदर्भ में अब भी बहुत सी सुधार होने हैं और यह स्तिथि संतोषजनक नहीं कही जा सकती क्योंकि कानून दृष्टि से यद्यपि उन्हें पूर्ण समानता मिल चुकी है लेकिन अब भी सिद्धांत और वास्तविकता में पर्याप्त अंतर है। आज भी अधिकांश भारतीय महिलाएं सामाजिक प्रतिबंधों तथा निर्योगिताओं में जकड़ी हुई हैं। पश्चिम में परंपरा और न्याय की दृष्टि से नारी और पुरुष दोनों समान हैं, पर यहां न्याय और सिद्धांत भले ही निष्पक्ष हों, परंपरा निश्चय ही महिला वर्ग के विरुद्ध है। अतः सामाजिक परिस्थितियों को बदलना आवश्यक है। साथ ही, भारत की ग्रामीण स्तिथि के जीवन में तो अभी भी इन सुधारों का हल्का सा स्पर्श हुआ है। प्लेटो ने लिखा है, "समाज में नारी का स्थान पुरूष के समान ही है। न कम न अधिक।"
स्त्री और पुरुष दोनों रथ के पहियों के समान हैं। यदि एक कमजोर और घटिया हुआ तो समाज में रथ निर्विघ्न आगे नहीं बढ सकता। स्त्री और पुरुष नभ में उड़ने वाले पक्षी के दो डैनो के समान हैं। यदि एक डैना छोटा या अशक्त रहे तो पक्षी नभ में विचरण नहीं कर सकता।
इस दृष्टिकोण से यह आवश्यक है कि स्त्रियों को सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक क्षेत्र में या दूसरे शब्दों में लोक जीवन में पुरुषों के समान ही प्रवेश करना होगा और पुरुषों के साथ _साथ कंधे से कंधे मिलाकर चलना होगा राष्ट्र की बहुमुखी प्रगति में हाथ बंटाना होगा।
(स्वरचित मौलिक)
संदीप कुमार सिंह✍️
जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)
बिहार

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