Danendra 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक झन भुलाहा संगी, झन भुलाहा ना 19410 0 Hindi :: हिंदी
छत्तीसगढ़ के माटी,चंदन के लकड़ी आऊ छत्तीसगढ़ी भाखा,बोली ल झन भुलाहा झन भूलाहा संगी ,झन भुलाहा ना दाई ददा आउ पुरखा के संगी हाथ जोड़ आउ राम राम कहैया हमर संस्कृति ल झन भुलैया ,संगी झन भुलैया चारो डहर मैं बैठे हे देवता पूजा पाठ में करत ह न्योता पीला चाउर दुबी आउ अगरबत्ती के चड़हैया, ल झन भूलहा संगी, झन भूलहा ना सरहद में खड़े हे खड़े फौजी भाईया दाई ददा, भाई भईया, आउ बहीनी के सुरता करत, बंदूक ल ताने सरहद म जवान ल झन भुलैया संगी, झन भूलाहा दू पैसा कमाए बर, शहर में आगे आऊ गाव गली के खेल्ल्या सुरता म आखी से आशु ह बोहात ,के मजा ल झन भूलाहा सगी , झन भूलाहा लाईका रहेन , त बाटी खेले, सायकल के चक्का ल हाथ में ढुलॉये झरझर, भरभर पानी गिरत म नाचे के मजा ल झन भूलहा, सगी झन भूलाहा तरिया नरवा, डबरी म मछरी धरे आऊ नहाए के मज़ा ल झन भूलाहा झन भूलाहा, संगी झन भूलाहा ना कतको पीड़ा होए, परेशानी होय , दाई दादा के पैर छुए के मजा आऊ शुक्रिया लेहे बर अपन परिवार ला झन भूलहा संगी ,झन भूलाहा, संगी झन भूलाहा ना Danendra Chhattisgarh