जितेन्द्र जय 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक #jitendra_jay #desh_ka_yuaa_behaal_huaa #like #love #poem #india #trend 16679 0 Hindi :: हिंदी
देश का युवा बेहाल हुआ, कोई युक्ति निकालो नेता जी। डिग्री लेकर भटक रहें, कोई भर्ती निकालो नेता जी।। आये थे डिग्री लेने तब, लगता था जग जीत लिए। एक हाँथ में पोथी-पत्रा, दूजे में संगीत लिए।। कॉलेज से घर आकर, फिर कोचिंग जाना पड़ता है। कभी-कभी टेंसन में हमको, भूखे सोना पड़ता है।। मर न जाये भूखे हम, कोई युक्ति निकालो नेता जी। डिग्री लेकर भटक रहें, कोई भर्ती निकालो नेता जी।। लेकर डिग्री इस दर से, उस दर तक जाना पड़ता है। एक नौकरी के लिए , चपरासी को साहब कहना पड़ता है।। नौकरी पाने के लिए, जी हुजूरी करना पड़ता है। उससे पहले साहब के घर, पानी भरना पड़ता है।। भर-भर के पानी थक चुके, कोई युक्ति निकालो नेता जी। डिग्री लेकर भटक रहें, कोई भर्ती निकालो नेता जी।। गाँव गली मोहल्ला में, आवारा मुझको समझते हैं। ये निकला सबसे निकम्मा, बापू से सब कहते हैं।। बातों-बातों में बापूजी, को समझाना पड़ता है। कभी-कभी गुस्से में उनका, जूता खाना पड़ता है।। जूता खाकर भी जिन्दा हूँ, कोई युक्ति निकालो नेता जी। डिग्री लेकर भटक रहें, कोई भर्ती निकालो नेता जी।। शादी करने से पहले, क्या करते हो सब पूँछते है। हमने कहा कुछ करने के लिये ही, देवी-देवता पूँजते हैं।। इतना सुनते ही देखुआ, झट चट्ट खड़े दुआरे हैं। इसी नौकरी के चक्कर में, अबतक हम कुँआरे हैं।। कुँआरे ही हम रह न जाये, कोई युक्ति निकालो नेता जी। डिग्री लेकर भटक रहें, कोई भर्ती निकालो नेता जी।। ~ जितेन्द्र जय रायबरेली (उत्तर प्रदेश)