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भविष्य का डर-ये कहानी उस लड़के की है जिसे अपनी ज़िन्दगी में भविष्य का डर हुआ था

Mohd meraj ansari 20 Sep 2023 कहानियाँ समाजिक डर, भविष्य, कैरियर, जीवनयापन, आगे का सोचना, पिता का साया, पैरों पर खड़ा होना 28239 0 Hindi :: हिंदी

ये कहानी उस लड़के की है जिसे अपनी ज़िन्दगी में भविष्य का डर हुआ था. शीर्षक से तो आप सभी असमंजस मे होंगे कि भविष्य का डर से लेखक का क्या अभिप्राय है? अभिप्राय यह है कि यदि आप अपने जीवन में अपने आने वाले कल को लेकर गंभीर नहीं हैं तो क्या हो सकता है इसका अंदाज़ा लगाना कितना मुश्किल है और भविष्य को सुधारना या बिगाड़ना हमारे अपने हाथ में होता है यह ज्ञान होना कितना जरूरी है. हर इंसान अपने बचपन में खेलकूद और मनोरंजन करता हुआ ज़िन्दगी बिताता है. उसे अपने भविष्य की कोई चिंता नहीं होती. क्योकि उसे अपने माँ-बाप का लाड-प्यार मिलता रहता है. उसे भविष्य की चिंता होगी ही क्यूँ? उसके माँ-बाप सोचते हैं कि हमारा बेटा बड़ा होकर इंजीनियर बनेगा, बेटी डॉक्टर बनेगी और ना जाने क्या क्या ख्वाब देखते हैं. लेकिन अगर वही बच्चा बड़ा होकर अपने माँ-बाप के सपनो की परवाह किए बिना जवानी में भी बचपना करे तो उन माँ-बाप का दिल टूट जाता है. उसे अपने भविष्य की चिंता हो या ना हो लेकिन वो बूढ़े माँ-बाप उसके भविष्य की चिंता में रोग ग्रसित और अधिक बूढ़े हो जाते हैं. जिस बच्चे को बड़ा होकर माँ-बाप को सहारा देना चाहिए वो खुद के पैरों पर खड़ा ना होना चाहता हो तो उन माँ-बाप का कलेजा कैसे जुड़ा रह सकता है. लेकिन अगर वही उनका लाडला बच्चा किसी वजह से सुधर जाता है और अपने पैरों पर खड़ा हो जाता है तो उस माँ-बाप से ज्यादा खुश हस्ती इस दुनिया में कोई नहीं होगी. इस दुनिया में हर इंसान दूसरे को अपने पीछे रख कर खुद आगे निकलना चाहता है लेकिन एक पिता ही होता है जो चाहता है कि मेरा बेटा मुझसे आगे निकले. इसके लिए उस पिता को खुद को बेचना पड़े तो वो भी करने मे झिझक नहीं करता. माँ वो हस्ती होती है जिसे अपने बेटे से ज्यादा अच्छा और कोई नहीं लगता. चाहे बेटा सपूत हो या कपूत माँ-बाप के आँखों का तारा ही होता है. ऐसी ही एक कहानी मै अपको बताने जा रहा हूँ जिसमे एक बेटा है और उसके माँ-बाप हैं. वो बेटा कैसे सुधरता है ये जान कर आशा करता हूँ कि आप को खुशी होगी. और उम्मीद करता हूँ कि किसी और का बेटा अगर बिगड़ा हुआ है तो ऐसी नौबत ना आए जैसी कहानी मे हुई है. चलिए कहानी पर आता हूँ.
ये कहानी है रेहान की. रेहान बचपन से होनहार था. सामान्य बच्चों से ज्यादा दिमाग वाला होने की वजह से थोड़ा शरारती तो था ही लेकिन दिल का साफ था. दिल का साफ होने की वजह थी उसकी माँ. जो उसे अच्छी बातें सिखाती थी और अच्छे संस्कार देती थी. माँ ने उसे कभी भी किसी से बुरा व्यवहार करना नहीं सिखाया. सब से कैसे बात करना है रेहान ने अपनी माँ से ही सीखा. भले ही माँ पढ़ी लिखी हो या ना हो लेकिन एक बच्चे के लिए पहली शिक्षक उसकी माँ ही होती है. रेहान की ज़िन्दगी में भी उसकी माँ ने ये किरदार बखूबी निभाया था. पिता पढ़ने के लिए दबाव डालते थे इसलिए रेहान उनसे थोड़ा चिढ़ा सा रहता था लेकिन माँ के प्यार में वो पढ़ाई भी करता था. पिता का ये मानना था कि आगे जा कर मेरा बेटा मेरा नाम रोशन करेगा लेकिन उन्होने भविष्य नहीं देखा था. रेहान धीरे धीरे बड़ा हुआ और पढ़ाई में प्रगति करता गया. हर कक्षा मे अव्वल आता था. फिर उसका स्कूल बदला और मछली नदी से निकल कर समुद्र में जा पहुँची. तब रेहान को ज्ञात हुआ कि अभी तक वो जिनसे पढ़ाई में आगे था वो तो छोटी मछलियां थीं. बड़ी मछलियों के बीच आकर उसे डर सताने लगा. डर की वजह से उसकी पढ़ाई कमजोर पड़ने लगी. किसी तरह उसने इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी कर ली. लेकिन आगे क्या करना है उसे समझ नहीं आ रहा था. उसे पता था कि उसके पिता उसे सहारा देने के लिए पीछे खड़े ही हैं. तो वो बिना किसी चिंता के इधर-उधर भटकता रहा. उसके पिता ने उसे समझाया और किसी तरह इंजिनियरिंग में उसका दाखिला करवाया. पहला साल उसने बिगाड़ दिया. क्योकि उसे अभी भी अपने भविष्य की चिंता नहीं हुई थी. दूसरे साल में भी उसने कोई तीर नहीं मारा. किसी तरह बस पास हो गया. दूसरे साल के बाद गर्मी की छुट्टियों में जब घर वापस आया तो उसके पिता घर बनाने के लिए ईंट बालू वगैरह लेने गए थे. वो घर पर बैठा आराम फरमा रहा था. तभी उसके पिता का फोन आया. वो बोले "बेटा मै यहां सामान लेने आया था. मेरी तबीयत खराब हो रही है. लेटा हुआ हूँ. जल्दी आ जाओ." रेहान ने साइकिल उठायी और भाई को लेकर पिताजी को खोजने निकल पड़ा. वहां जा कर देखा तो उसके पिता नीचे जमीन पर पेट पकड़ कर बैठे हुए थे. रेहान बोला चलिए साइकिल पर बैठिए मै आपको घर ले चलता हूँ. लेकिन पिताजी की हालत पेट दर्द की वजह से बहुत खराब थी. उन्होने कहा मैं साइकिल से नहीं चल पाऊंगा. तुम रिक्शा बुला लो. साइकिल भाई को देकर पिताजी के साथ रेहान रिक्शा पर बैठ गया. अभी कुछ दूर ही चले थे कि पिताजी की तबीयत और खराब होने लगी और उन्हे चक्कर आने लगे. रेहान के मन में डर बैठ गया. पिताजी बोले कि उनकी तबीयत बहुत खराब हो रही है अस्पताल चलना पड़ेगा. रिक्शा अस्पताल की ओर मोड़ा गया और ठीक अस्पताल के सामने उसके पिताजी उसकी बाहों में बेहोश हो गए. डर के मारे उसे कुछ सूझ नहीं रहा था कि वो क्या करे. दोनों भाइयों ने पिताजी को गोद में उठाया और अस्पताल में बेड पर ले गए. डॉक्टर आए तो उन्होने बेहोश हालत में देख कर कार की चाभी से उनके पैर के तलवे मे खरोंचा. खरोंचते ही पिताजी को होश आ गया और रेहान की जान में जान आई. उस दिन रेहान को अपनी ज़िन्दगी में सब से ज्यादा डर लगा था. वो डर था भविष्य का. उसे ये चिंता होने लगी थी कि यदि आज पिताजी को कुछ हो गया तो वो क्या करेगा. पढ़ाई को भी 1 साल बाकी थे. काम-धाम कुछ करता नहीं था. घर कैसे चलाएगा. भाइयों को कैसे पढ़ाएगा. और भी ना जाने कितनी बातें उसके दिमाग में घूमने लगी थीं. 5 दिन तक रेहान के पिता अस्पताल में भर्ती रहे. इलाज चलता रहा. रेहान दिन में उनके पास रुकता था और रात को घर जा कर आराम करता था. रात मे उसकी माँ पिताजी की देखभाल करती थीं. 5 दिन के बाद पिताजी अस्पताल से घर लौटे और रेहान अपनी पढ़ाई के लिए अपने कॉलेज लौटा. ये उसकी इंजिनियरिंग का आखिरी साल था. उसने बहुत मेहनत की और अच्छे नंबरों से पास हुआ. उस घटना ने रेहान के मन में भविष्य का डर पैदा कर दिया था जिसकी वजह से देर से ही सही लेकिन रेहान सुधर गया. और पढ़ाई कर के भविष्य बनाने के लिए निकल पड़ा.
मै उन बिगड़े हुए बेटों से कहना चाहता हूँ कि ऐसी कोई घटना होने का इंतजार ना करें और अपने भविष्य के लिए अभी से चिंतन करें. ताकि आपको सफल होने में उतनी देर ना लगे जितनी रेहान को लग गयी. क्योकि बड़े-बुजुर्गों का कहना है "हमारा भविष्य हमारे ही हाथ में है."

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