Anany shukla 30 Mar 2023 कविताएँ अन्य नल की बूंद 97011 0 Hindi :: हिंदी
टपक रही नल की बूंदे खुद को सोच रही क्या यही हमारी किस्मत है क्या यह बदलेगी नहीं क्या नहीं गिर सकती मैं किसी के शरीर पर क्या नहीं पड़ सकती मैं किसी के चीर पर क्या लिखा है मेरी किस्मत में यूं ही गिर जाना संग साथियों से अपने यूं ही बिछड़ जाना क्या यही मेरा गुनाह है जो मैं साथ ना चली क्या चली जाऊंगी दूर मेरा हश्र है यही हे प्रभु तुम ही बता दो क्या मिलूंगी ना कभी अब तो मेरा संयम भी टूट जा रहा मिलूंगी फिर कभी यह भरोसा जा रहा पर आशा ना छोडूंगी भरोसा है तुम पर अगर ना मिली यहां तो मिलूंगी धरातल पर छोडूंगी ना साथ तेरा तुझ में ही समाऊंगी जहां से हुई थी अलग वही फिर मिल जाऊंगी