संदीप कुमार सिंह 23 Apr 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाजिक हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 8275 1 5 Hindi :: हिंदी
बहुत हुआ है देर अब,अब तो आंखें खोल। सूरज लाए दिवस नव,जो है अति अनमोल।। बहुत हुआ है देर अब,सुन लो प्रभु फरियाद। जीवन को रंगीन कर,बना मुझे उस्ताद।। बहुत हुआ है देर अब,अंधकार मय रात। सुन ले नव जज्बात को,मुझ से कर ले नात।। बहुत हुआ है देर अब,निकल रही है आह। फिर भी मन में आस है,और भव्य है चाह।। बहुत हुआ है देर अब,और बढ़ा अन्याय। देना जवाब सख्त है,हरदम रखूं उपाय।। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह ✍🏼 जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
11 months ago
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....